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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org करतो नथी ते उपाध्याय २, स्वयं ग्रहण करे छे अने बजाने ग्रहण करावे छे ते स्थावर ३ अने स्वयं ग्रहण करतो नथी तथा बीजाने ग्रहण करावतो नथी ४ (११) स्वयं प्रश्नने पूछे छे पण बीजावडे प्रश्न करावतो नथी ते लघु शिष्य १, बीजाओवडे पूछाय छे पण स्वयं पूछतो नथी ते गुरु. २, स्वयं पूछे छे अने पूछाय छे ते स्थविर साधु ३ तेमज स्त्रयं पूछ तो नथी अने बीजावडे पूछावातो नथी ते जिनकल्पिक. ४. आ प्रश्नसूत्र शास्त्रना विषयमां समज. (१२) पोते सूत्रादिने बोले छे पण बीजा पासे बोलावतो नथी १, बीजा पासे बोलावे छे पण पोते बोलतो नथी २, पोते बोले छे अने बीजा पासे बोलावे छे ३ तेमज पोते बोलतो नथी तथा बीजा पासे बोलावतो नथी ४ (१३) कोईएक पुरुष सूत्रने धरनार हे पण अर्थने घरनार नथी ते नवीन अभ्यासी १, कोई पुरुष अर्थने धरनार छे पण सूत्रने धरनार नथी जाणकार श्रावक विगेरे २, कोईक पुरुष सूत्र अने अर्थ बन्नेना धरनार छे ते गीतार्थ ३ अने कोईक पुरुष सूत्रधर तथा अर्थधर पण नथी ते जड मनुष्य ४ (१४) ( सू० २५५ ) टीकार्थ:-चौद सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के - आपतन - आपात, अर्थात् प्रथम मिलाप तेमां भद्रक - सुखकारक, केम के जो अने भाषणादि द्वारा सुखकर होवाथी. संवास-लांबा कालना सहवासमां कल्याणकारक नहिं केम के हिंसक होवाथी अथवा संसारना कारणमां जोडनार होवाथी. १, साथै वसनाराओने अत्यंत उपकारीपणाए संवासभद्रक, परंतु प्रथम मिलनमां भद्रक , म नबोल अने कठोर भाषण विगेरे होवाथी. २, एवी ज रीते त्रीजो अने चोथो भांगो जाणवो ४. (१) ' वज्जं 'ति त्याग कराय छे ते वर्ज्य, अथवा अवद्य - पाप (अकारनो लोप थवाथी अवज्जने बदले मूलमां वज्ज थयेल छे. ) अथवा वज्रनी माफक भारे होवाथी वज्र-हिंसा, असत्य विगेरे पापरूप कर्म, कोईएक पुरुष पोताना पापकर्मने कलह विगेरेमां जुवे छे, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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