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कृतिका नक्षत्रनो अग्नि नामनो देव छे यावत् भरणी नक्षत्रनो यम नामनो देव छे (ते दरेक चार चार छे). मंगळ प्रथम ग्रह छे अने भावकेतु अठ्यासीमो ग्रह छे. बाकीचें वर्णन बीजा स्थानकमां जंबूद्वीपना द्वारादि विगैरेनी जेम समुद्रना द्वार विगेरे जाणवा. (सू० ३०५) चक्रवाल-वलयनो विस्तार, जंबूद्वीपथी फरता रहेल धातडीखंड अने पुष्करा द्वीपमां चार भरत अने चार ऐवत क्षेत्र छे. शब्दवडे जणातो उद्देशक ते शब्दोद्देशक अर्थात् बीजा स्थाननो त्रीजो उद्देशो तेनी माफक कहेचु, परंतु बे स्थानना अनुरोधथी त्यां 'दो भरहाई' बे भरत इत्यादि कहेलुं छे, अहिं तो चार भरत विगेरे कहेल छे. (सू० ३०६) __ मनुष्य संबंधी वस्तुओर्नु चतुःस्थानक कह्यु. हवे क्षेत्रना साधर्म्यथी नंदीश्वर द्वीप संबंधी वस्तुओनुं समीपना सूत्रथी चार स्थानकने ' नंदीसरस्स' इत्यादि सूत्रबडे कहे छे.
[अथ नन्दीश्वरविचारः] गंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवालविक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं चत्तारि अंजणगपव्वता पं० तं०-पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वते, दाहिणिल्ले अंजणगपव्वए, पञ्चत्थिमिल्ले अंजणगपठवते, उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते ४, ते णं अंजणगपव्वता चउरासीति जोयणसहस्साइं उर्दू उच्चत्तेणं एगं जोयणसहस्सं उबेहेणं मूले दस जोयणसहस्साई विक्खभेणं तदणंतरं च णं मायाए २ परिहातेमाणा २ उवरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पण्णत्ता, मूले
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