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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वखत जवानो भय छें मुजने आकरो, दर्शन द्यो तो लाखेणो कहेवाय जो. पंचमे आरे प्रभुजी मलवां दोहिलां, तो पण मलीया भाग्यतणो नहीं पार जो; उवेखो नहीं थोडा माटे साहिबा, एक अरजने मानी लेजो हजार जो. सुरतरु नाम धरावे पण ते हुं शुं करूं, साचो सुरतरु तुं छे दीनदयाल जो; मनगमतुं दई दान ने भवभय वारजो, साचा थाशो षट्काय प्रतिपाल जो. करगरुं तो पण करुणा जो नहीं लावशो, लंछन लागे संघपति नाम धरावी रे; पाये वलग्या ते सविने सरखा कर्या, धीरज आपो अमने भक्त ठरावी रे, नाभिनरेश्वर नंदन आशा पूरजो, रहेजो हृदयमां सदा करीने वास जो; कांतिविजयनो अंतिम पण अभिराम छे, सदा सोहागण मुक्ति थाय विलास जो. ३६. ऋषभ जिणंदने वंदीए रे ४ For Private and Personal Use Only ५ ६ ७ ऋषभ जिणंदने वंदीए रे, सिद्धाचल शणगार सलूणा; मरुदेवाना नंदने रे, भेटता परमानंद सलूणा... जिम जिम प्रभु गुण गाईए रे, तिम तिम सुख अपार सलूणा. १ ७६
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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