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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सायं. ५ सकल जनममां ए मानवभव, लेखे करीय सराशुं. ४ सुरवरपूजित पदकज रज, मिलवट तिलक चढावशुं; मनमा हरखी डुंगर फरसी, हैडे हरखित था|. समकितधारी स्वामी साथे, सद्गुरु समकित लाशें, छ'री पाली, पाप पखाली, दुर्गति दूरे पलाशें; श्री जिननामी समकित पामी, लेखे त्यारे गणाशें, ज्ञानविमल कहे धन धन ते दिन, परमानंद पद पाशुं. ७ ३५. गिरिवरियानी टोचे रे गिरिवरियानी टोचे रे, जगगुरु जई वस्या, ललचावो लाखोने लेखे न कोई रे; आवी तलाटीने तलीये टलवलुं एकलो, सेवक पर जरा महेर करीने देखो रे, हाम-धाम ने दाम नथी हुं मागतो, मांगु मांगण थईने चरण हजुर जो; काया निर्मल छे ते प्रभुजी जाणजो, आप पधारो दिलडे दिलडां पूरजो. जन्म लीधो तें दुःखियानां दुःख टालवा, ते टालीने सुखिया कीधा नाथ जो; तुम बालकनी पेरे रे हुं पण बालुडो, नमि-विनमि ज्युं धरजो मारो हाथ जो. जेम तेम करी पण आ अवसर आवी मल्यो, स्वामी-सेवक सामासामी थाय जो; ७५ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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