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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वासोश्वास कमलसमो, तुज लोकोत्तर वात. देखे न आहार निहार चरम चक्षु धणी, एहवा तुज अवदात. ५ चार अतिशय मूलथी, ओगणीश देवना कीध, कर्म खप्याथी अग्यार, चोत्रीश एम अतिशया, समवायांगे प्रसिद्ध. ६ जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग, पद्म विजय कहे एह समय प्रभुपालजो, जिम थाउं अक्षय अभंग. ७ ३२. जग जीवन जग वालहो जग जीवन जगवालहो, मरुदेवीनो नंद लाल रे; मुख दीठे सुख उपजे, दरिशन अतिहि आनंद लाल रे०१ आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशिसम भाल लाल रे; वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिहि रसाल लाल रे.जग०२ लक्षण अंगे विराजतां, अडहिय सहस उदार लाल रे; रेखा कर चरणादिके, अभ्यंतर नहि पार लाल रे. जग० ३ इंद्र चंद्र रवि गिरि तणां, गुण लई घडीयुं अंग लाल रे; भाग्य किंहा थकी आवियु, अचरिज एह उत्तंग लाल रे. ४ गुण सघला अंगीकर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे; वाचक यशविजये थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे.जग० ५ ३३. में भेट्या नाभिकुमार में भेट्या नाभिकुमार, में भेट्या मरुदेवानंद ७३ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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