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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ मूके सोना रुपा, राजा मूके महोर; हुं मूकुं चपटी चोखा, दादाने दरबार... हां हां दादाने दरबार. ४ कोई मांगे कंचनकाया, कोई मांगे आंख; कोई मांगे चरणोनी सेवा, दादाने दरबार... हां हां दादाने दरबार. ५ पांगलो मांगे कंचनकाया, आंधलो मांगे आंख; हुं मांगुं चरणोनी सेवा, दादाने दरबार... हां हां दादाने दरबार. ६ हीरविजय गुरु हीरलो ने, वीर विजय गुण गाय; शत्रुजयनां दर्शन करता, आनंद अपार... हां हां आनंद अपार.७ ३१. प्रथम जिनेश्वर प्रणमिए प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये, जास सुगंधी रे काय; कल्पवृक्ष परे तास इंद्राणी नयन जे, भृगपरे लपटाय. १ रोग उरग तुज नवि नडे अमृत जेह आस्वाद; तेहथी प्रतिहत तेह मानुं कोई नवि करे, जगमां तुमशुं रे वाद. २ वगर धोई तुज निर्मली, काया कंचन वान; नहि प्रस्वेद लगार तारे तुं तेहने, जे धरे ताहरु ध्यान, ३ रागगयो तुज मन थकी, तेहमां चित्र न कोई, रुधिर आमिषथी राग गयो तुज जन्मथी, दूध सहोदर होय. ४ ७२ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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