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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (६) ए तीरथनी उपरे ए तीरथनी उपरे, अनंत तीर्थंकर आव्या; वली अनंता आवशे, समतारस भाव्या. आ चोविसी मांहि एक, नेमीश्वर पाखे; जिन त्रेवीश समोसर्या एम आगम भाखे. गणधर मुनिवर केवली, समोसर्या गुणवंत; प्रेम ते गिरि प्रणमतां, हरखे दान हसंत. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) सिद्धाचल गिरि वंदीए, सिद्धाचल गिरि वंदीए द्रव्य भावथी बेश; द्रव्य भाव गिरि जाणतां, रहे न मनमां क्लेश. सात नयोथी जाणीने, विमलाचल ध्यानार; अवश्य मुक्तिपद लहे, शुद्धातम पद सार. निर्विकल्प स्वभावथी ए, तीर्थज आपोआप; बुद्धिसागर संपजे, रहे न दुविधा ताप. " (८) प्रथम नमुं श्री आदिनाथ प्रथम नमुं श्री आदिनाथ, शत्रुंजय गिरि सोहे; नाभिराय मरुदेवी नंद, त्रिभुवन मन मोहे. लाख चोराशी वरस आयु, सुवर्ण सम काय; राणी सुनंदा सुमंगला, तस कंत सोहाय. लंछन वृषभ विराजतो ए धनुष पांचसो देह; विनीता नगरीनो धणी, रूप कहे गुणगेह. २९ For Private and Personal Use Only २ ३ १ २ ३ २ ३
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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