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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए० ६ शाश्वत सुख पाम्या सही, वंदु तेहनां पाय रे . ए० सीमंधर स्वामी उपदिशे, परषद बार मझार रे. इंद्र प्रते कहे भरतमां, एक शत्रुंजय सार रे. ए० इम निसुणी ए गिरि नमी, आव्या कालिकसूरि पास रे; ए० पूछी विचार निगोदना, बात कही तव खास रे. ए० प्रतिमा चैत्य थयां इहां, तिम असंख्य उद्धार रे; ए० चैत्री पूनम दिन एहनो, महिमा भांख्यो अपार रे. ए० चैत्री उत्सव जे करे, ते लहे भवदुःख भंग रे; ए० श्री विजयराजसूरीसरू, दान अधिक उछरंग रे. ए० ६५. ऐसी दशा हो भगवन (राग : मैं कही कवि न बन जाउं ) ऐसी दशा हो भगवन, जब प्राण तनसे निकले, गिरिराज की हो छाया, मन में न होवे माया, उरमें न मान होवे, दिल एक तान होवे, ९९ तपसे हो शुद्ध काया. १ संसार दुःख हरणां, जैन धर्मका हो शरणां, ८ ९ तुम चरण ध्यान होवे. २ हो कर्म मर्म खरणां. ३ अनशनको सिद्ध वट हो, प्रभु आदिदेव घट हो, गुरूराज भी निकट हो. ४ यह दान मुजको दीजे, इतनी दया तो कीजे, अरजी सेवक (तिलक) की लीजे. ५ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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