SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए गिरि सेव्याथी शिवगति पाम्या, सकल कर्म निपाते; श्री आदीश्वर सुतना नंदन, द्राविड वारिखिल जाण; कार्तिक पूनम दिन दश कोडी, ऋषि युत लहे निर्वाण. ३ अष्टादश अक्षौहिणी दलना, चूरक जे बलवंत; गोत्र निकंदन करीने संच्यो, जेणे पाप अनंत; ते पण एह ज तीरथ उपरे, करी अणसण उच्चा; उत्तम नर ते पांचे पांडव, पाम्या भवजल पार. त्रण कोडी ने लाख एकाj, ऋषि युत राम मुणींद; तिम नारदादिक साधु अनंता, पाम्या पद महानंद; ते माटे ए गिरिनुं साधु, सिद्धक्षेत्र इति नाम; श्री विजयराज सूरीश्वर विनयी, दान करे गुणग्राम. ६४. भाव भगति भविजन धरी भाव भगति भविजन धरी, भेटो ए गिरिराय रे; ए तीरथ वारूं, अतिशय गुण ए गिरि तणा, - एक मुखे न कहेवाय रे; ए तीरथ वारूं. १ जोयण दश जस चूलिका, पचास जोयण विस्तार रे; एक आठ जोयण उन्नतपणे, एह मान ऋषभने वारे रे. ए० २ इण ठामे आदिसरू, साथे बहु परिवार रे; ए. रायण रूख समोसा, पूर्व नवाणुं वार रे.३ थावच्चा सुत मुनिवरू, तिम शुकराज मुनीश रे. ए० पंथग शेलग इण गिरि, आप थया जगदीश रे. ए० ४ शांब प्रद्युम्न आदि जिहां, असंख्यात मुनिराय रे; ए. For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy