SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८. ऋषभदेव हितकारी ऋषभदेव हितकारी, परमगुरु ऋषभदेव हितकारी, प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति व्रतधारी. वरसीदान देई तुम जगमें, ईलति ईति निवारी; ऐसी कांई करता नाही करूणा, साहिब बेर हमारी . २ मांगत नहि हम हाथी घोडे, धन कन कंचन नारी: दीयो मोहे चरण कमलकी सेवा, याही लागत मोहे प्यारी. ३ भव लीला वासित सुरडारे, तुम पर सबही उवारी, मे मेरो मन निश्चय कीनो, तुम आणा शिरधारी. ऐसो साहिब नही कोउ जगमें, यासु होय दिलधारी, दिल ही दलाल हे प्रेम के बीचे, तिहां हठ खेंचे गमारी. ५ तुमहो साहिब मे हुं बंदा, या मत दियो विसारी, श्री नयविजय विबुध सेवक के, तुम हो परम उपकारी. ६ ४९. ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा ४ ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा, तुम दरिशन होवे परमानंदा, अहनिश ध्याउं तुम दिदारा, महेर करीने करजो प्यारा. १ आपणनी पूठे जे वलग्या, किम सरश्ये एने कीधा अलगा, अलगा कीधा पर रहे वलग्या, मोर पीछ परे न होये उभगा . २ तुम पण अलगे थये केम सरशे, भक्ति भली आकर्षी लेशे, गगने उडे जेम दूर पडाई, दोरी बले हाथे रहे आई. ३ मुज मनडुं छे चपल स्वभावे, तोये अंतमूहर्त प्रस्तावे, तुं तो समय समय बदलावे, एम केम प्रीति निवाहो थावे . ४ ८६ For Private and Personal Use Only
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy