SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य ते हृदय जेणे तुज सदा समरतां, धन्य ते रात ने धन्य दिहां. गुण अनंता सदा तुज खजाने भर्या, एक गुण देत मुज शुं विमासो, रयण एक देत शी हाण रयणायरे, लोकनी आपदा जेणे नाशो. गंग सम रंग तुज कीर्ति कल्लोलीनी, रवि थकी अधिक तप तेज ताजो, नयविजय विबुध सेवक हुं आपनो, जश कहे अब मोहे भव निवाजो. ४७. विमलाचल जई वसीये... विमलाचल जई वसीये चालोने सखी! (२) आदि अनादि निगोदमां वसीयो पुन्य उदेय निकस्यो, चार गतिमां भ्रमण करीने लाख चोराशी फस्र्यो. देव नारकी तिर्यंच मांही वली दुःख सह्यां अहनिशीये, पुन्य प्रभावे मनुष्यभव पामी देश अजरामरमां वसीये. देव गुरूने जैन धर्म पामी आतम ऋद्धि उल्लसीये, श्री सिद्धाचल नयणे निहाली पाप तिमिरथी खसीये. काल अनादिना मोहरायनां मसी लईने मुख घसीये, श्री आदीश्वर चरण पसाये क्षमा खड्ग लई धसीये. मोहने मारी आतम तारी शिवपुरमां जई वसीये, जिन उत्तम पद रूप निहाली केवल लक्ष्मी फरसीये. ८५ For Private and Personal Use Only ८ ያ २ ३ ५
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy