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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बसाई यह निश्चितरुप से नहीं कहा जासकता । गरूड पुराण के अनुसार भारत की सात नगरियों में इस नगरी की गणना है। अयोध्या, मथुरा, माया, काशी' कांची, अवन्तिकापुरी, द्वारामती चव, सप्तता मोक्षदायका उस श्लोक से उज्जयिनी का महत्व सहज सिध्द हो जाता है । महाभारत के काल में उज्जयिनी न केवल राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी अपितु एक विद्याकेन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध थी। ___श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम के साथ यहीं अपने गुरू सांदीपनी के आश्रम में अध्ययन किया था। सुदामा और कृष्ण की यहीं मित्रता हुई थी। यह नगरी प्राचीन काल से ही जैनों की तीर्थ स्थली रही हुई है । यहां अनेक घटनाएं घटित हुई है। उनमें से कुछ घटनाओं को अक्षर देह प्रदान करने का सौभाग्य पाकर मैं अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा हूँ। _____ महासती मयणासुन्दरी के जन्म से पावन बनी यह अवन्तिका नगरी जैन शास्त्रों में अनेक जगह अपना अस्तित्व रखती है। अवन्तिका नगरी अतीव प्राचीन नगरा है इस नगरी की महत्वपूर्ण घटनाओं में श्री सिध्दचक्राराधन करने के द्वारा श्रीपाल मयणा ने अपना कुष्ट रोग मिटाया था व श्रीपाल मार्ग खारा कुआ पर स्थित जिनालय वर्षों पहले की याद ताजी करते है । भगवान श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जिनालय वर्षों पहले की करूण घटना की स्मृतियों को ताजी करता है तो भेरुगढ़ स्थित सिद्धबड़ माणीभद्र देव के पराक्रमी एवं आराधक सेठ माणकशा की याद दिलाता है। इन घटनाकों को साक्षात करने लिये ही यह पुस्तक लिखने का चारु प्रयास किया है मैंने । जो कि यहां यात्रार्थ आने वाले सभी को उपयोगी सिद्ध होगी मेरे प्रयास के बावजूद भी हो सकता है कुछ भूले रह गई होगी अतः ध्यानाकर्षण के लिये आभारी रहूँगा उन यात्रियों का साथ ही इस पुस्तक को और भी आकर्षक बनाने के लिये आपके सुझावों का भी स्वागत है । मुनिश्री जितनगर For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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