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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुझे भी कुछ कहना है । भारत के इतिहास में जैन धर्म और जैन तीर्थं अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते है। जैन तीर्थों में अवन्तिका नगरी का महत्वपूर्ण स्थान है अवन्तिका को उज्जयिनी और उज्जैन भी कहा जाता है । धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपित सांस्कृतिक, व्यापारिक और सामायिक दृष्टि से भी इसका अद्वितीय स्थान है । यह उज्जमिनीनगरी देश की प्राचीनतम नगरियों में प्रमुख नगरी मानी जाती है इस नगरी की प्राचीनता का काल निर्धारण अभी तक इतिहासज्ञ भी नहीं कर पाये है । हमारी संस्कृति जितनी प्राचीन है उतनी ही प्राचीन है यह उज्जयिनी नगरी । उज्जयिनी प्रायः भारत के मध्य भाग में २३.११ अक्षांश और ७५.४७ देशान्तर पर स्थित है । विध्याचल के उत्तरी ढाल में एक पठार पर क्षिप्रा नदी के किनारे पर बसी हुई है। प्राचीन काल में यह नगरी मालव अथवा मालवा के नाम से जानी जाती थी । मध्य कालिन इतिहास में मालबा नाम से ही इस नगरी का उल्लेख हुआ है । मालव प्रदेश की जलवायु समशीतोष्ण है आज उज्जैन किसी साम्राज्य की राजधानी नहीं है । फिर भी भौगोलिक स्थिति और गौरवमय इतिहास हजारों धार्मिक यात्री एवं को आकर्षित कर रहा है। देशी हो या विदेशी सब ने इस नगरी कष्ठ से प्रशंसा की है। संस्कृत के विद्वान कवियों ने जिनमें For Private and Personal Use Only यहां की पर्यटकों की मुक्त कालिदास और प्रमुख है इसकी प्रशंसा की है। फाह्यान ने अपनी यात्रा वर्णन में इस नगरी का वर्णन किया है। मुगल सम्राट जहांगीर इस प्रदेश पर मुग्ध था । ब्रिटिश अधिकारी डा. विलियम हंटर ने भी इस नगरी का सजीव वर्णन किया है । उज्जयिनी का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह नगरी कब बनी किसने
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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