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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधिष्ठायक देव श्री माणीभद्रवीर मालवदेश की उज्जयिनी नगर में श्रीमन्ताई की टोच पर पहुंचे माणकशा सेठ की हवेली जग प्रसिद्ध थी । समृध्दि का पार नहीं था। माणकशा सेठ नगरजनों में अग्रगण्य थे। उनके यहां अनेक अश्व, बैल और वाहन थे । उनका व्यापार देश विदेश में चलता था। माणकशा जिनेश्वरदेव के उपासक थे। कुलाचार से ही वे जिनेश्वरदेव की सेवा पूजा करते रहते थे। माणकशा सेठ का सन्मान प्रजाजनों में अभतपूर्व था। धार्मिकजनों में भी वे अग्रगण्य थे। - एक दिन उज्जयिनी नगरी में लोकागच्छ के आचार्य अपने शिष्यों के साथ आये । नगरंजन उनके प्रवचन श्रवण करने गये । आचार्य ने भी जिनमत को छुपा कर अपने मतानुसार लोगों को प्रतिबोधित करने का प्रयास किया। अन्य लोग तो अपने अपने घर चले गये किन्तु माणकशा सेठ ने लोकागच्छ स्वीकार कर लिया। प्रतिदिन के नित्यनियमों देव दर्शनादि को भी उन्होंने छोड़ दिया। जब उनकी माता को इस बात का पता चला तो वह बड़ी दुःखी हुई । अपने पुत्र ने सत्य धर्म का त्याग किया है तो ऐसी कौनसी माता होगी जो दुःखी नहीं होगी ? ___किन्तु वह माता सच्ची माता थी । मात्र दुःख मना कर ही नहीं बैठो वह, उसने पुत्र माणकशा को पुनः सत्य धर्म पर श्रद्धावान बनाने का प्रण किया। उसी दिन से उस वात्सल्यमयी माता ने घी का त्याग कर दिया। ___ माणकशा की पत्नि ने अपनी सास को घी रहित भोजन करते देखा तो एक दिन पूछ ही लिया "माताजी "। आपने घी क्यों त्याग़ किया है ?" माता ने कहाः “मैंने प्रतिज्ञा की है कि मेरा माणक जब तक जिना [46] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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