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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोजन प्राप्त हो सके इस हेतु भोजनशाला का निर्माण करवाने का निश्चय किया। यहां के जागृत अधिष्ठायकों को मेहर से बढ़वाण निवासा श्रेष्ठिवर्य श्री कान्तिलालजी जीवनलालजी अवजो ने भोजनशाला बनवाकर 'श्री पार्वतीबाई जैन भोजनशाला' का नाम लिखवाकर संस्था को समर्पित की। साथ ही यहां यात्रार्थ आने वाले यात्रियों को एक टाइम का भोजन निशुल्क हेतु 11000 रुपये की स्थाई राशी भी संस्था के संचालकों को समपित की थी। भोजनशाला आज पर्यंत चाल है आज भी यहां यात्रार्थ आने वाले यात्रियों का एक टाइम निःशुल्क भोजन दिया जाता है । वह भोजनशाला श्रीवर्धमान तप आयम्बिल भवन की दूसरी मंजिल पर है । उपाश्रय का नव निर्माण श्रीपाल-मयणा सुन्दरी के आराधना स्थल पर पुनः श्री सिद्धचक्रजी का विशाल नयनारम्य पट्ट की प्रतिष्ठा होने से पुन: यह जिनालय श्री सिद्धचकाराधन तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध होने लगा था। यात्रियों के साथ-साथ पूज्य मुनिभगवन्तों का तथा साध्वीजी महाराजों का आवागमन भी बढ़ने लगा । दूर-दूर से श्रमणवर्ग यात्रार्थ यहां आने लगे। उस समय यहां मनिवरों को ठहराने के लिये एक जीर्ण मकान था । वहीं मुनिभगवन्त ठहरते थे । सुविधा नाम की कोई व्यवरथा यहां नहीं थी । संस्था के संचालकों को पूज्य आचार्यदेव श्री चन्द्रसागर सरीश्वरजी महाराज साहेब ने पौषधशाला के नवनिर्माण के लिये प्रेरित किया। __ पेढ़ो के संचालक श्री मांगनीरामजी मगीलाल जी सिरोलिया ने आचार्य देव श्री के उपदेश से प्रेरित होकर उपाश्रय का निर्माण करने के लिये अपनी तैयारी बताई गुरुदेव के मार्गदर्शन में विक्रम सवंत 2017 में रुपये । 8000 खर्च करके उपाश्रय भवन की एक मंजिल तैयार हो गई। इससे यहां पधारने वाले मनिवरों को अत्यधिक सुविधा हो गई। पूज्य आचार्य देव श्रीचन्द्रसाग़र सूरीश्वरजी के उपदेश से उज्जैन कलकत्ता, अहमदाबाद, बम्बई, आदि सद्गृहस्थों की लक्ष्मी से उपाश्रय भवन के उपर दूसरी और तीसरी मंजील रु. 70,000 खर्च करके बनाई गई। [23] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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