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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के परिणाम है इसलिए परिणाम की चिन्ता से मुक्त रहकर अपना धर्म करती रहना। मयणा ने कहा " गरुदेव.... । मुझे कोढिया पति मिला है इस बात का कतई दुख नहीं है किन्तु लोग धर्म की निन्दा करते हैं यह बात मुझे कांटे की तरह चुभ रही है आप कोई उपाय नहीं बता सकते गुरूदेव ? "मयणा ... । हम तो निर्ग्रन्थ साधु है मन्त्र-तन्त्र बताना हमारे लिये योग्य नहीं हैं किन्तु इस जैन शासन में मनवान्छित की प्राप्ति करवाने वाला सिध्दचक्र है तू नवपद की आराधना करना तेरा पति अवश्य ही रोग मुक्त हो जावेगा ।" गुरुदेव ने उपाय बताया। मयणासुन्दरी पुनः गुरुदेव को वंदन करके अपने स्थान पर चली गई । उसने निश्चय किया कि मैं नवपद की आराधना करूगी। समय बीता और शाश्वतो नवपद की ओलीजी का पदार्पण हुआ मयणासुन्दरी ने अपने कुष्ठिपति राणा के साथ भगवान श्री ऋषभदेवजी के जिनालय में नवपद को ओली आराधना प्रारम्भ की। पहले ही दिन अरिहंत की आराधना करके प्रभुजी का पक्षाल अपने पति को लगाया कि चमत्कार हुआ । आधा कुष्ठ रोग उसी क्षण भाग गया। आराधना करने का उल्लास खूब ही बढ़ गया था। प्रतिदिन आराधना के बाद पक्षाल लगाने से रोग नष्ट होने लगा। अन्तिम दिन तो राणा की देह सुवर्ण की तरह चमकने लग गयी थी। उसका सारा रोग नष्ट होकर निरोगी हो चुका था। उसका रूप मानों कामदेव से भी ज्यादा रूपवान हो चुका था। ___ उम्बरराणा भौर मयणासुन्दरी के हर्ष का पार न रहा। उन्होंने सभी सात सौ कोढ़ियों के कुष्ट रोग का भी निवारण किया स्नात्र नल से ..। सभी उम्बरराणा की जय-जयकार करते हुवे अपने-अपने स्थान पर चले गये। उम्बरराणा ही श्रीपालराजा के नाम से जैन जगत में प्रसिद्ध हवे है। श्रीपाल राजा के पिता का नाम सिंहरथराजा था। वे चम्पानगरी के राजा थे। श्रीपाल और मयणासुन्दरी ने इसी उज्जैन में नवपद को माराधना करके कुष्ठ रोग दूर किया था। . [15] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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