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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा में तो बुद्धि थी ना ? उसने उसे कुष्ठि के साथ परणा कर घोर अन्याय किया है । कोई माता की बुराई कर रहा है तो कोई शिक्षक पंडित सुबुद्धि को कोस रहा है तो कोई धर्मं को ही निंदा कर रहा है। अरे जैन धर्म ही ऐसा है जिसमें न तो विनय है और न विवेक । 1 मयणा सारी बातें सुनती हुई जा रही थी । उसे दुख एक बात का था कि लोग धर्म की निंदा कर रहे हैं उसमें निमित्त वह बनी है । मयणा उम्बर राणा को लेकर निसिहि निसिहि निसिहि बोलते हुवे जिनालय के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करती है। सामने ही ऋषभदेव प्रभु की प्रतिमाजी यो भव्य मुखार बिन्द तेजस्वी नयन प्रशान्त वदन की कान्ति पद्मासन पर विराजमान प्रभु के सन्मुख राणा को ले जाकर प्रभु की स्तुति बोलने में एक तान हो गई। अपने सारे दुःख को भूल कर मयणासुन्दरी परमात्मा की भक्ति में लीन हो गई । उसी समय वहां चमत्कार हुआ। परमात्मा श्री ऋषभदेव जी के कण्ठ में रही पुष्पमाला और उनके हाथ में रहा बिजोरू फल उछले जिसे राणा और मयणा ने झेल लिये । अहो भाग्य है हमारा जो कि अधिष्ठायक देवों के द्वारा ये देव दुर्लभ वस्तु हमें प्राप्त हुई । मयणा को विश्वास हो गया कि थोड़े ही दिनों में उसके स्वामी का रोग दूर हो जायेगा । जिनालय में चैत्य बंदन करने के बाद मयणा उपाश्रय में विराजमान पूज्य गुरुदेव को वंदन करने के लिये गई । गुरुदेव भी अचरज में पड़ गये। रोज अनेक सखियों के साथ आने बाली राजसुता किसी कुष्ठि के साथ कैसे आई ? गुरुदेव ने मयणा से पूछा "राजकुमारी । आज अकेली कैसे ? और ये साथ में कौन है ? गुरुदेव .... । अब में मालवपति की पुत्री नहीं रही उम्बरराणा की महारानी बन गई हूं..। पिताजी ने मेरी शादी ७०० कोठिये के स्वामी इन राणा के साथ की है । मयणा ने राज सभा में घटित सारी घटना कह डाली । क्षण भर तो गुरूदेव भी अचरज में पड़ गये एक पल को तो उन्हें भी नहीं समझ में आया परन्तु शीघ्र ही सकते की हालत से बाहर आते हुए उन्होंने मयणा से कहा “रामकुमारी यह सब पूर्व भव के कर्मो [14] For Private and Personal Use Only
SR No.020739
Book TitleSiddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitratnasagar, Chandraratnasagar
PublisherRatnasagar Prakashan Nidhi
Publication Year1989
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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