SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३ स्वक् तिक्तकटुका स्निग्धा, मातुलुंगस्य वातजित् ।। बृहणं मधुरं मांस, वातपित्तहरं गुरु ॥ वीजौरा का मांस (गुदा) पुष्टिकारक मधुर वातहर और पित्तहर है, वगेरह। -(वाग्भट्ट) बीजपुरो मातुलुंगो रुचकः फलपूरकः॥ बीजपुरफलं स्वादु, रसे ऽम्लं दीपनं लघु ॥१३॥ रक्तपित्तहरं कण्ठ- जीव्हा हृदय शोधनम् ॥ श्वास कासा ऽरुचिहरं हृद्यं तृष्णाहरं स्मृतम् ॥१३२॥ बीजपुरो ऽपरः प्रोक्तो मधुरो मधुकर्कटी ॥ मधुकर्कटिका स्वाद्वी रोचनी शीतला गुरुः ॥१३३॥ रक्तपित्त क्षय श्वास कास हिक्का भ्रमा ऽपहा ॥१३४॥ बीजौरा-रत्तपित्तदोषका नाशक कण्ठ जीभ व हृदयका शोधक श्वास कास व अरुचिका विनाशक और तृष्णाहर है। मधुर बीजौरा-शीतल रक्तपित्तनाशक है, वगेरह । (भावप्रकाश निघण्टु फलवर्ग) (३) स्मरणमें रहे कि-मुरघाका मांस उष्णवीर्य है। मानेदाह वगेरहको वढानेवाला है। (सुश्रुत संहिता) अब भ० महावीर स्वामी के दाह वगेरह रोग की अपेक्षा शौचा जाय तो निर्विवाद सिद्ध है कि-यहां मुरघा सर्वथा प्रतिकूल है चउपत्तिया भाजी और बीजौरा ही उपकारक है। नतीजा यह है कि-रेवती श्राविकाके घरमें जो 'कुक्कुड़भांसक' था वह 'बीजोरा पाक' था। भगवतीसूत्र के प्राचीन चूर्णीकार और टीकाकारोने उक्त शब्द से बीजौरापाक ही लीया है। जैसा कि-- मार्जारो वायुविशेषस्तदुपशमनाय कृतम्-संस्कृतम्-मार्जारकतम् ॥ अपरे त्याहु:-माजोरो बिडालिकाभिधानो वनस्पतिविशेषः For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy