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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९९ मार्जार-मार्जारः स्यात् खट्वांश - बिडालयोः । खट्टी चीज. ( क० स० श्री हेमचन्द्रसूरि कृत हैमी अनेकार्थ- नाममाला ) ( वैद्यक शब्द - सिन्धु, जैनधर्म प्र० ५४ / १२ / पृ० ४२७ ) मार्जार- इगुद्यां तापस तरु मर्जर । इदुगीका दरखत, जिस के तेल से बीजौरा हिमज वगेरह भुंजे जाते है ( है मीनिटु संग्रह ) मार्जार - बिडाल | मार्जारी, मार्जारिका, मार्जारांधमुख्या - कस्तुरी मार्जार गंधा, मार्जारगन्धिका- - एक किस्मका हिरन ( श्री जैन सत्यप्रकाश व० ४ अं० ७ ० ४३ ) ये शब्द और इनके अर्थ " मार्जार" शब्द वनस्पति वर्ग में कितना व्यापक है इसका ठीक परिचय देते हैं । अब भगवान् महावीर स्वामी के दाहरोग की अपेक्षा शोचा जाय तो मानना पडेगा कि यहां बिडाल का तो कोई काम नहीं है, किन्तु मार्जार वनस्पति और खट्वांश ही उपकारक है । अतः उक्त रोग पर इनकी भावनावाला औषध ही दीया गया था । बात भी ठीक है कि- दाह रोगमें खटाई वगेरह उपकारक हैं। उक्त रोग में मार्जार नामका वायु भी सामील था, उसकी शान्ति के लीये जो संस्कार दिया जाय वह भी " मार्जारकृत" माना जाता है । इसी तरह यहां माजारका अर्थ " वायु" भी है । भगवती सूत्र के प्राचीन टीकाकारोने उक्त शब्द का वायु और वनस्पति अर्थ ही बताया है । जैसा कि - मार्जारो वायुविशेषः तदुपशमाय कृतम् - संस्कृतं मार्जार कृतम् ॥ अपरे त्वाहु:- मार्जारो बिडालिकाभिधानो वनस्पतिविशेषः तेन कृतं भावितं यद् तत् । ( आ० श्री अभयदेवसूरि कृत भग० टीका पत्र - ) ( आ० श्रीदानशेखरसूरि कृत भग० टीका पत्र - ) माने मार्जारवायु दबाने के लीये जो औषध संस्कार दिया जाय वह " मार्जारकृत" माना जाता है । और मार्जार मानें बिडालीका नामक वनस्पति से जो संस्कारित किया वह भी " मार्जारकृत" माना जाता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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