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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ताए कर्म पकरेता रहपसु उववति, तंजहा-महारंभयाए महापरिग्गहयार पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं । (श्री उववाइ सूत्र ) ( ) भुंजमाणे सुरं मंसं, परिखुडे परंदमे ॥ ॥ अयकक्करभोई य, तुंदिल्ले चियलोहिए । आउयं नरए कंखे, जहां एस व पलए ॥७॥ (उत्तराध्ययनसूत्र अ० ७ गा० ७) हिंसे बाले मुसाबाई, माईल्ले पिसुणे सढे। भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयंति मन्नई ॥९॥ (उत्तराध्ययनसूत्र अ० ५ गा. ९) तुहं पियाई मंसाई, खंडाई सोल्लगाणि य । खाईओ विसमंसाई, अग्गिवण्णइ ऽणेगसो ॥६७॥ (उत्तराध्ययनसूत्र १. १९ गा० ६७ ) अमजमंसासि अमच्छरीआ, अभिक्खणं निविगई गया अ। अभिक्खणं काउलग्गकारी, सज्झायजोगे पयओ हविजा ॥ (श्रीदशवकालिकसून चू. २ गा• ४) ( ) मेसज्जं पियमंसं देई, अणुमन्नई जो जस्स । सो तस्स मल्ललग्गो, वच्चइ नरयं ण संदेहो ॥ ॥ ( ) दुग्गंधं बीभत्थं इन्दियमलसंभवं असुइयं च । खइएण नरयपडणं विवजणिज्ज अओ मंसं ॥ ॥ ( ) सधः संमूच्छिता नन्त-जन्तु संतान दृषितम् । नरकाध्वनि पाथेयं, कोऽश्नीयात् पिशितं सुधीः१॥ ॥ आमासु अ पक्कासु अ विपच्चमाणासु मंसपेसीसु । सययं चिय उववाओ भणिओ उ निगोयजीवाणं ॥ (योगशास्त्र, प्रकाश ३ श्लो• मूल व टीका) इत्यादि पाठो से भगवान् महावीर स्वामी के आदर्श रूप अहिंसक जीवन का और अहिंसा के उपदेश का पुरा परिचय मिल जाता है। ऐसे अहिंसा के प्रजापति को मांसाहारी मानना-कहना या लीखना, वह मन का जीमका और कलमका ही दोष है। For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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