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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७ पणा करे किन्तु उसे अपने आचरणमें उतारे नहीं तो उस कोरा सिद्धांत की असर जनता पर होती नहीं है। गौतमबुद्ध ने भी अहिंसा का सिद्धान्त तो प्रकाशा था किन्तु खूदने मांसाहार किया, फलतः आज तक बौद्धधर्ममें मांसाहार जायज है । भगवान् महावीर स्वामीने अहिंसा का सन्देश दीया साथोसाथ उसे अपने जीवन में ओतप्रोत कर दिया और सर्वरीत्या अहिंसाका पालन किया, फलतः आजतक जैनधर्म में मांसाहार त्याज्य माना जाता है, इतना ही नहीं किन्तु कोई भी विचारक मनुष्य अहिंसा यानी दया कानाम लेने मात्र से आजभी " यह जैनधर्म प्रधान वस्तु है" ऐसा बोल उठता है । यह वस्तु भगवान् महावीर के अहिंसक जीवन की पुरेपुरी ताईद करती है । भगवान् महावीर की वाणीमें जिनागमो में मांसाहार की सख्त ही मना है, जिसके कई पाठ इस प्रकार है (१) से भिक्खू वा० जाव समाणे सेजं पुण जाणेजा मंसा - इयं वा मच्छाइयं वा मंसखलं वा मच्छखलं वा नो अभिसंधारिज गमणाए । ( आचारांगसूत्र, निशियसूत्र ) (२) अमजमंसासिणो । ( सूत्रकृतांगसूत्र अ• १ ) ये यावि भूजन्ति तपगारं, सेवन्ति ते पावमजाणमाणा । मर्णन एयं कुसलं करन्ती, वायावि एसा वुझ्याउ मिच्छा । (सूत्रकृतांग सूत्र श्रुत० २. अ० ६. गां० ३८) (३) चउहिं ठाणेहिं जीवा णेरइयत्ताए कम्मं पकरेंति, तंजहा महारंभयाए महापरिग्गहयार पंचिदियवणं कुणिमाहारेणं । ( - श्रीस्थानांग सूत्र स्थान - ४ ) ( ४ ) महारंभयाए महापरिगहियाए कुणिमाहारेण पंचेन्दियवहेणं नेरइयाउयकम्मासरीरापपयोगनामाए कम्मस्स उदपणं नेरकम्मासरीरे जाव पयोगबन्धे । ( श्रीभगवतीजी सूत्र श० ८. उ० ९ सू० ) ( ) चउहिं ठाणेहिं जीवा णेरइयत्ताए कम्मं पकरेंति रह For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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