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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ पगदीए अक्खलिओ, सव्यंतिदियंमि णवमुहुत्ताणि । णिसरदि निरुवमाणो, दिव्वझुणी जाव जोजणयं ।।९०१|| सेसेसुं समयेसुं, गणहर देविंद चक्कचट्टीणं । पण्हाणुरूवसमत्थं, दिवझुणीए य सत्तभंगीहि ॥९०२॥ छदव्य णवपयत्थो, पंचद्विकाय सत्ततच्चाणि । णाणाविह हेइहि, दिव्यज्झुणी भणइ भवाणं ॥९०३।। माने--तीर्थकर भगवान् दिव्यध्वनिसे उपदेश देते हैं, प्रश्नों का उत्तर देते हैं, मगर उनकी वह भाषा कंठ तालु आदिके व्यापारसे रहित या निरक्षरी होती है । ( तिलोय पण्णति, पर्व ४था) जैन-तीर्थकर व केवली भगवान साक्षरी भाषामें ही उपदेश देते हैं, अत एव हम समझते हैं लाभ उठाते हैं और प्रसन्न होते हैं। यदि वे निरक्षरी भाषामें बोलें और हम समझ न सकें तो उनके पास क्यों जाय ? इस हालतमें बारहों पर्षदा तो सिर्फ दिखाव मात्र ही मानी जायगी। दिगम्बर-तीर्थकर भगवान निरक्षरी भाषा से उपदेश देते हैं उसको गणधर ही समझते हैं। और गणधर द्वारा हमें जिनवाणी का ज्ञान होता है । बिना गणधर तो तीर्थकर की वाणी खिरती ही नहीं है। भगवान महावीरस्वामी ऋजु वालुका नदी पर देवकृत समवसरन में उपदेश देते मगर गणधर हुए ही नहीं थे, अतः गणधर के अभाव में ६६ दीन तक उनकी वानी न खिरी। जैन-तवतो हमको गणधर से ही लाभ होता है इस हालतमै जब तीर्थकर उपदेश देखें तो समवसरन में जाना फिजूल है और केवलीओंको गणधर न होने के कारण घाणी खिरेगी ही नहीं, अतः उनके उपदेश में भी जाना फिजूल है। इसके अलावा यह भी मानना पडेगा कि तीर्थकर उपदेश देने में पराश्रित है। अफसोस । न मालूम ! यह बात दिगम्बर विद्वानों ने कैसे उठाई होगी? दिगम्बर शास्त्र में भी बिना गणधर तीर्थंकरों का उपदेश होने का स्पष्ट उल्लेख है। देखिए For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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