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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) नंदीश्वर भक्ति श्लो० ३१-३२ में गिरितल, दरे, गुफाएँनदी-वन-वृक्षके स्कंग जलधि और अग्निशिखा इत्यादि स्थान से साधुआंका निर्वाल होना बताया है। अतः स्पष्ट है कि-यापन आदिका कोई खास नियम नहीं है। किसी भी आलम से केवल ज्ञान हो परंतु बाद में केवली भगवान विहार करने हपये किसी भी मुद्राले केवल ज्ञान हो परन्तु वादमें मेपाल्मे होता है, सम्भवतः दिगम्बर विद्वानों ने इस ख्याल से सब कवलीओको नहीं किन्तु सिर्फ तीर्थकरों को ही मेवोन्मेष का निषेध कहा है। कुछ भी हो दिगम्बर शास्त्र एकान्ततः विशिष्ट मुद्रा और आसन के पक्ष में नहीं हैं। दिगम्बर- आपने दिगम्बर शास्त्रों के आधारसे गृहस्थ और वस्त्रधारी मुनिको ममता न होने के कारण मोक्ष सिद्ध किया है, किन्तु प्रश्न यह है कि वस्त्र केवलझान को ढंक देता होगा। जैन-जहाँ ममता है यहां केवल ज्ञानकी मना है। ममता नहीं रहने से वस्त्र ही क्या समोसरन और सोने के कमल वगैरह ऋद्धि वैभव विभूति भी केवलज्ञानकी वाधक नहीं है, इसके अलावा छद्मस्थ ज्ञान भी वस्त्र से नहीं बता है, फिर केवल ज्ञानका तो पूछना ही क्या ? केवल ज्ञान क्षायिक है रूपी अरूपी दृप्य अदृष्य सब पदार्थो का शान कराता है केवल ज्ञानी पर वस्त्र डालनेसे केवल ज्ञान व जाय, घसा नहीं है। स्वयंभू स्तोत्र श्लोक ७३, १०९ में तीर्थकरोंका वैभव बताया है और श्लोक १३२ में फणामंडल की स्वीकृति दी है। निर्ममता के कारण ये सब केवल ज्ञान के वाधक नहीं है। दिगम्बर-केवली भगवान किली चोजको छूते नहीं हैं, यहां तक कि भूमितलको भी नहीं छूते है फिर वस्त्र का क्या पूछना ? जैन-यह भी एक निराधार कल्पना ही है, इसके विरुद्धमें दिगम्वर शास्त्रों के अनेक पाठ हैं। देखिए(१) स्वामी समन्तभद्रजी भूमि विहार बताते हैं। ( स्वयंभू स्तोत्र श्लो. २९, १०८) (२) आ०सिद्धसेनसरि सिंहासन के ऊपर बैठने का उल्लेख करते हैं। ( कल्याण० २३) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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