SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५] 8 देवर्षिणां प्रशौचाय, स्नानाय गृहमेधिनां । (मा० शिव कोटि कृत रत्नमाला श्लोक ६३, ६४ ) (जैन दर्शन व० ४ नं ३ पृ० १११-११२ अं४ पृ ५५-५८ ) २ मुहूर्त गालितं तोय, प्रासुकं प्रहर द्वयम् । उष्णोदक महोरात्र-मतः संम्मूर्छित भवेत् ।। (स्न माला, जैन दर्शन वर्ष ४ अं० ३ पृ.१६) ३ वृक्षपर्णोपरि पतित्वा यज्जलं यत्युपरि पतति तस्य प्रासुक त्वा द्विराधनाकायिकानां जीवानां न भवति ( आ० कुन्द कुन्द कृत भाव प्राभृत गा० १११ की टीका पृ० २६१ ) ४ विलोडितं यत्र तत्र विक्षिप्तं वस्त्रादि गालित जलं । पानी के विलोड़ित इत्यादि चार भेद हैं । विलोडित छना हुआ पानी अचित्त है । पाषाण स्कोटितं इत्यादि पानी भी विलोड़ित मान जाते हैं। (दि. मा. श्रुत सागर कृत तत्वार्थ सूत्र टीका) ५ अत्यक्तात्मीय मसद्वर्ण-संस्पर्शादिक मंजसा । अप्रासुकमथा तप्तं, नीरं त्याज्यं व्रतान्वितैः ।। .... ( प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, संधी २२, श्लो०६३) ६ नभस्वता हतं ग्राव-घटी यन्त्रादि ताडितम् तप्तं सूर्यांशुभिर्व्याप्यां मुनयः प्रासुकं विदुः ॥ ५३॥ स्नानादि ॥ ५४॥ (पं० मेधावि पं० कुल तिलक कृत धर्मसंग्रह श्रावकाचार) ® दिगम्बर मत में भाकाश चारण सिद्धि प्राप्त मुनि देवर्षि माने जाते हैं। ( चारित्र सार पृ० २२, प्रवचनसार पृ० ३४३ जैन दर्शन व० ४ पृ० ३३१) . भयका एक विहारी या मासोपवासादिक धारक महामुनि देवर्षि हैं। (जैन दर्शन, व०५ प १५९) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy