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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदय प्राप्त प्रकृति निरर्थक नहीं होती है वो अपना कार्य अवश्य करती है । इन उदय प्रकृतिओं से सिद्ध ह कि केवलीओं के शरीर में ७ धातुएं हैं। (२) ब्र० शीतलप्रसादजी केवली के शरीर में नख त्वचा रोंआ और त्वचा पर की महीन झिल्लीका भी भेद बताते हैं । (चर्चासागर समीक्षा पृ. ८०) जव सात धातुओं का अभाव कैंसे माना जाय ? (३) तीर्थंकरों के ३४ अतिशय में एक अतिशय यह है कि तीर्थकों के खून और मांस सफेद होते हैं केशः श्मश्रुच लोमानि नखाः दंताः शिरास्तथा । धमन्यः स्नायवः शुक्र-मेतानि पितृजानि हि ॥ (चर्चासागर, चर्चा १९९) पित प्राप्त केश वगैरह रहे और दांत नख शुक्र वगैरह न रहे, यह असम्भवित है । पुवेद में मोक्ष माननेवाली समाज स्त्री प्राप्त नहीं किन्तु पुरुषप्राप्त अंगोंका निषेध करे, यह भी एक विसंवाद है। (४) आ० कुन्द कुन्ड फरमाते हैं कि-अरिहंत भगवान् को १० प्राण, ६ पर्याप्ति, १००८ लक्षण और गाय के दूधसा सफेद माँस तथा सफेद रुधिर होते हैं। (बोध प्राभृत गा० ३१ । ३८) (५) केस णह मंसु लोमा, चम्म वसा रुहिर मुत्त पुरिसं वा । __णेवट्ठी णेव सिरा, देवाण सरीर संठाणे ॥ (मूलाचार अ० १२ "लो० ११ । चर्चा सागर चर्चा १९९) संहनन रहित देवों को केश आदि का अभाव होता है, अर्थापत्ति से मानना पड़ेगा, कि-संहनन वाले को ये सब वस्तुएं होती हैं-रहती हैं। (६) १२ प्रकृति " ध्रव उदय" कहलाती हैं, जो सबके उदय में रहती हैं । वे ये हैं-तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णादि चतुष्क, अगुरुलघु, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ १२ । (व. शीतलप्रसादकृत मोक्षमार्ग प्रकाशक भा० २ अध्या० ४ नामकर्मके उदयस्थान, पृ. १९१) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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