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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ . अट्ठावयम्मि सेले, चौदसभत्तेण सो महारिसिणं । दसहिं सहस्सेहि, समं निव्वाणमणुत्तरं पत्तो ॥४३४॥ ( आवश्यकनियुक्ति, गा० ३०६, ४३४ ) (६) आ० शुभचन्द्रजीने "क्रियाकलाप" के निर्वाणसूत्र में भगवान् महावीरस्वामी का निर्वाण तप "छह" बताया है। इसी प्रकार सब तीर्थकरों को विभिन्न निर्वाण तप है। (७) आ० नेमिचन्द्रजी फरमाते है सयोगि केवली भगवान को बंध में १, उदय में ४२, उदीरणा में ३९ और सत्ता में ८५ प्रकृति होती हैं। (गोम्मटसार कर्मकांड गा• १०२, २७१, २७२, २७९ से२८१, ३४', ३४१) जोगिम्हि य समयिक हिदि सादं (गो. क. १०२) माने-केवली भगवान शाता वेदनीय को बांधते हैं, जिसकी स्थिति एक समय की होती है। तदियेक-वज-णिमिणं, थिर सुह-सर-गदि-उराल-तेजदुगं । संठाणं वण्णा-गुरुचउक पत्तेयं जोगिनि ।२७१॥ तदियेकं मणुवगदी, पंचिंदियसुभगतसतिगाऽऽदेज। जसतीत्थं मणुवाऊ, उच्च च अजोगि चरिमम्हि ॥२७२।। माने-केवली भगवान को एक वेदनीय, वनऋषभनाराव संहनन, निर्माण, स्थिर शुभ स्वर गति औदारिक और तेज का युग्म, संस्थान, वर्णादि चार, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उश्वास, प्रत्येक, दूसरा वेदनीय, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग, त्रस, वादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थकर, मनुष्यायु और उच्च गोत्र ये ४२ प्रकृतियां उदय में होती हैं। इनमें से अंत की १२ प्रकृतियाँ अयोगीकेवली को भी उदय में होती हैं । (गो. क. २७१, २७२) वेदनीय, संहनन, निर्माण, औदारिक युग्म, तैजस, पर्याप्त, मनुष्यायु वगैरहका उदय है वहाँ तक आहार अनिवार्य है। केवली भगवान को शाता अशाता और मनुष्यायु सिवायकी सब उदय प्रकृति, यानी ३९ प्रकृतिओं की उदीरणा होती है। (गो० क० मा० २७९ से २८१) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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