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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि केवली भगवान आहार लेते हैं तो क्या उक्त्य तप भी करते हैं ? जैन-हा, वे आहार के अभावरूप तप भी करते हैं। दिगम्बर-केवली भगवान के आहार और तप के लिये शास्त्रप्रमाण दीजिये! जैन-दिगम्बर शास्त्रों में केवली भगवान के आहार और तपके प्रमाण ये हैं। (१) सर्व मान्य आ० श्री उमास्वातिजी कहते हैं एकादश जिने । (तवार्थ० अ० ९ सू० ११) . केवली भगवान को ११ परिषह होती हैं माने शुद्ध आहार पानी मिलने पर क्षुधा और प्यास का शमन होता है। (२) आ० कुन्दकुन्द बताते हैं कि गइ इंदियं च काए, जोए वेए कसाय णाणे य । संजम दंसण लेसा, भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥३३॥ टीका-आहारे आहारकद्वयमध्येऽईत आहारकानाहारकद्वयं । ___यहाँ टीकाकार ने आहारक शब्द बना लिया है वह उसका अनाभोग है । वास्तविक बात यह है कि केवली भगवान आहार लेते हैं, नहीं भी लेते हैं, आहारी है, अनाहारी भी हैं ॥ आहारो य सरीरो, तह इंदिय आण पाण भासा य । पज्जत्तिगुणसमिद्धो, उत्तमदेवो हबइ अरुहो ॥३४॥ पंच वि इंदिय पाणा, मण वय कारण तिनि बलपाणा, आणप्पाणप्पाणा, आउग पाणेण होति दह पाणा ॥३५। ( बोधप्रामृत ) (३) आ० समन्तभद्रजी लिखते हैं कि बाह्यं तपः परम दुश्चरमाचरंस्त्वं । आध्यात्मिकस्य तपसः परिवहणार्थम् ।। ध्यानं निरस्य कलुषट्यमुत्तरस्मिन् । ध्यानद्वये ववृतिषेऽतिशयोपपन्ने ॥८३।। (बृहत्स्वंयभूस्तोत्रम् ) For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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