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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ११५ ] का समावेश आश्चर्य में हो जाता है । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों अघटित घटनाओं का कभी २ होना भी मानते हैं और उसे आश्चर्य की संज्ञा देकर “किसी २ समय में ऐसा होजाता है" इतना ही उसके बारे में खुलासा करते हैं । वर्तमान चौबीसी में मल्लिकुमारी उन्नीसवें तीर्थकर हुए हैं मगर यह आश्चर्य, माने अशक्य नहीं, दुशक्य घटना मानी जाती हैं अनेकान्तवादी ऐसी नैमित्तिक घटनाओं के बारे में एकान्त इन्कार भी नहीं कर सकते हैं । दिगम्बर-- यदि दिगम्बरीय शास्त्रों में भी स्त्रीदीक्षा और स्त्रीमुक्ति का विधान है तो दिगम्बर समाज उनका निषेध क्यों करता है ! जैन - - दिगम्बर समाज नग्नता का एकान्त हामी है. इसी से उसको क्रमशः वस्त्र, वस्त्रधारी की मुक्ति, और सीलसीला में स्त्रीमुक्ति का निषेध करना पडा है। वास्तव में नग्नता की एकान्त मान्यता हट जाय तो स्त्री मुक्ति का निषेध की भी आवश्यकता नहीं रहेगी, अत एव अनेकान्तवाद के ज्ञाता दिगम्बर आचार्यों ने स्त्रीमुक्ति का भी कुछ २ उल्लेख भी किया है । जिनको में ऊपर बता चुका हूं। इसके अलावा वैदिक साहित्य भी स्त्री को वेदा ध्ययन और मुक्ति का कुछ निषेध करना है. उसके असर वाल ब्राह्मणों में से बने हुए ब्रह्मचारी और भट्टारकों ने भी उस विषय को संभवतः ज्यादा जोर दे दिया होगा। कुछ भी हो, किन्तु स्त्री दीक्षा और स्त्रीमुक्ति दिगम्बर शास्त्रों से भी सिद्ध है । दिगम्बर - गीताजी अ० ६ के श्लोक ३२ में कहा है. किमां हि पार्थ ! व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः । खियो वैश्यास्तथा शूद्रा स्तेपि यान्ति परां गतिम् ॥ इसके सामने जैनधर्म तब ही उदार विशाल और विश्व - व्यापक बन सकता है जब कि शूद्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति का विधायक हो । ऊपर के प्रमाणों को देखकर हर एक विचारक को खुशी होगी कि दिगम्बर शास्त्र भी शुद्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति बताते हैं, यह जैनों के लिये अभिमान की बात है । इतना ही नहीं किन्तु जैन दर्शन इस हालत में ही सर्वोपरि दर्शन है, अनेकान्त दर्शन है। For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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