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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ १०७ ] ही स्त्रियों को पहिले तीन संहनन नहीं रहते हैं किन्तु अंत के तीम ही रहते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन -- विज्ञान के नियमानुसार वस्तु की क्रमशः दानि वृद्धिं होना यह तो ठीक बात है किन्तु आपने तो एक ही हुक्म से एक दम, एक नहीं, दो नहीं, किन्तु तीन २ संहननों का परिवर्तन कर दिया । वाह जी वाह ? क्या पहिले संहनन वाली सब एक साथ मर गई यानी उन सब को एक साथ में देह पलटा हो गया १ न मालूम ऐसी २ कई कल्पित बाते दिगम्बर शास्त्रों में दाखिल कर दी गई होंगी । वास्तव में दि० शास्त्र तो स्त्री वेद में है संहनन का उदय मानते हैं । उक्त गा० ३१ में है संहननों का विधान है। बन्धसत्वाधिकार में है संहनन बताये हैं और गा० ३८८ गा० ७१४ इत्यादि कई स्थानों में स्त्री के लिये क्षपक श्रेणी व अवेदिपन वगैरह उल्लेख हैं । फिर भी स्त्रियों के लिये वज्र ऋषभनाराच वगैरह सहननों का निषेध करना यह तो किसी भाषा टीकाकार दिगम्बर विद्वान की ही नई सूझ है । स्त्री मरकर छटे नरक में जाती है कि जहां पहिले तीन संहननवाले जा सकते नहीं है, इसी से भी स्त्री को शुरु के ३ सेंद्दनन होना सिद्ध है । दिगम्बर विद्वान् श्रीमान् अर्जुनलाल शेठी तो स्त्री मुक्ति पृ० २३ व २७ में उक्त गाथा को क्षेपक ही बताते हैं और दिगम्बर शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को छै संहनन का होना मानते हैं । दिगम्बर - समकीती मरकर स्त्री वेद में नहीं जाता है, फिर स्त्री वेद में केवल ज्ञान कैसे होवे ? फिर तो जैन - समकीती मरकर मनुष्य गति में भी नहीं जाता मनुष्य को भी केवल ज्ञान नहीं होना चाहिये, आपके For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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