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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " [ १०६ ] न च पुंदेहे स्त्रीवेदोदयभावे प्रमाणमङ्गं च । भावः सिद्धौ पुंवत्, पुंसोऽपि न सिध्यतो वेदः || ३६ || पुंसि स्त्रियां स्त्रियां पुंसि तच तथा भवेद् विवाहादिः । यतिषु न संवासादिः स्याद्गतौ निष्प्रमाणेष्टिः ॥ ४२ ॥ अनडुह्या नड़वाहीं, दृष्टवानड़वाहमनडुहारूढम् । स्त्रीपुंसेतरवेदो, वेद्यो नानियमतो वृत्तेः ॥ ४३ ॥ नाम तदिन्द्रिय लब्धेरिन्द्रियनिवृत्तिमिव प्रमाद्यङ्गम् । वेदोदयाद् विरचयेद् इत्यतदड़ो न तद्वेदः ॥ ४४ ॥ या पुंसि च प्रवृत्तिः पुंसि स्त्रीवत् स्त्रिया स्त्रियां च स्यात् । सा स्वकवेदात् तिर्यक्वद लाभे मत्तकामिन्याः || ४५ ॥ अर्थात्-वेद कषाय का परिवर्तन नहीं होता है । पुरुष को स्त्री वेदोदय नहीं होता है । श्रतएव कीसी भी वेद के द्रव्यभाव भेद नहीं हैं स्त्री की शरीर रचना यह नामकर्म का ही भेद है । उसके अस्तित्व में केवलज्ञान हो सकता है एवं स्त्री मोक्ष की अधिकारिणी है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर—स्त्री को पहिले के "तीन संहनन" का अभाव है अतः मोक्ष नहीं मिलता है। देखिए सन्ती छ स्संहडगो, बज्जदि मेघं तदोपरं चापि । सेवट्टादि रहितो, पण पण च दुरेग संहडणो ॥ ३१ ॥ अंतिम तिग संहडण स्मुदयो पुरा कम्मभूमि महिलाणं । आदिम तिग संहडणं, यत्थिति जिहिं विदिहं ॥ ३२ ॥ ( गोम्मटसार कर्मकांड गा० ३१, ३) 'माने स्त्रियों को युगलिक काल में पहिले के तीन सहमन होते हैं पीछे के तीन संहनन नहीं होते हैं बाद में कर्मभूमि होते + For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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