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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuti Gyanmandir अर्थ-तदनंतर राजा कहे हमारी अनाथ राज्य लक्ष्मीको पालनेमें समर्थ है इस लिए इस कुमरका नाम श्रीपाल कुमर ऐसा होवो इस कहने कर उस कुमरका नाम श्रीपाल ऐसा स्थापा ॥ २८८ ॥ सो सिरिपालो वालो, जाओ जा वरिसजुयलपरियाओ।ता नरनाहो सूलेण, झत्ति पंचत्तमणुपत्तो ॥२८९॥ अर्थ-वह श्रीपाल बालक जितने २ वर्षका भया उतने उसका पिता सिंहरथ राजाने शूल रोगसे शीघ्र मरण पाया ८९ कमलप्पभा रुयंती, मइसायरमंतिणा निवारित्ता । धाईउच्छंगठिओ, सिरिपालो छाविओ रज्जे ॥ २९० ॥ ___ अर्थ-तब रोती भई कमलप्रभा रानीको मतिसागर मंत्री मनाकरके धाय माताकी गोदीसे श्रीपालवालकको लेके राज्यमें स्थापा ॥ २९० ॥ जंबालस्सवि सिरिपाल-नाम रन्नो पवत्तिया आणा। सवत्थवि तो पच्छा, निवमयकिच्चंपि कारवियं ॥२९१॥ | अर्थ-जो बालकभी श्रीपाल नाम राजाकी आज्ञा सर्वत्र प्रवर्ताई बाद राजाका मृतक कार्य अग्निसंसकारादि कराया ९१ है बालोवि महीपालो, रज पालेइ मंतिसुत्तेण । मंतीहिं सबथवि, रज रक्खिजए लोए ॥ २९२॥ P अर्थ-बालकभी श्रीपाल राजा मंत्रवीकी व्यवस्थासे राज्य पाले यह अर्थ युक्त है जिस कारणसे सर्वत्र लोकमें मंत्रियों करके राज्यकी रक्षा करी जावे है कहाभी है मंत्रिहीनो भवेद् राजा तस्य राज्यं विनश्यति इति वचनात् २९२ ACCASSACASSES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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