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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-वह अपने जमाईका वृत्तान्त सुनके संतोष प्राप्त भई रुप्पसुंदरी रानी कुमरकी मातासे पूछे, सो कैसे, कहते भाषाटीकाचरितम् हैं हे सखि हे सम्वधनि तुम्हारे पुत्रकी वंशोत्पत्ति सुननेकी इच्छा है किस वंशमें उत्पन्न भया है ॥ २८४॥ 18| सहितम्. पभणेइ कुमरमाया, अंगादेसंमि अत्थि सुपसिद्धा। वेरिहिं कयअकंपा, चंपानामेण वरनयरी ॥ २८५॥ दू ॥ ३८॥ ___ अर्थ-अब कुमरकी माता कहती है अंग नाम देशमें अतिशय प्रसिद्ध चंपा नामकी प्रधान नगरी है वैरियोंने नहीं है किया है कंप जिसको ऐसी ॥ २८५॥ तत्थ य अरिकरिसीहो, सीहरहो नाम नरवरो अस्थि । तस्स पिया कमलपहा, कुंकुणनरनाहलहभइणी॥ | अर्थ-उस चंपानगरीमें वैरीही हाथी उन्होंको भगाने में सिंहके जैसा सिंहरथ नामका राजा है सामान्यसे वर्तमानका निर्देश किया है अन्यथा सिंहरथ राजा होता भया उस राजाके कुंकणदेशके राजाकी छोटी बहिन कमलप्रभा नामकी रानी है ॥ २८६॥ दूतीए अपुत्तियाए, चिरेण वरसुविणसूइओ पुत्तो। जाओ जणियाणंदो, वद्धावणयं च कारवियं ॥२८॥ | अर्थ-नहीं विद्यमान पुत्र जिसके ऐसी रानीके बहुत कालसे प्रधान स्वप्न सूचित पुत्र भया कैसा पुत्र उत्पन्न किया है है आनंद जिसने ऐसा राजाने वधाई कराई ॥ २८७ ॥ ४ ॥३८॥ पभणेइ तओ राया, अम्हमणाहाइ रायलच्छीए। पालणखमो इमो ता, हवेउ नामेण सिरिपालो ॥२८॥[RI For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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