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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जारिसमेरिस असमंजसेण, चरिएण जीवयंतीए । जायं मज्झ इमीए, धूयाइ कलंकभूयाए ॥२७२॥ | अर्थ जैसा दुःख ऐसा अयोग्य आचरण करनेसे कलंकभूत पुत्री जीवती भईसे मेरेको उत्पन्न भया कि जिसने अपने पतिको छोड़के अन्य पुरुषको अंगीकार किया ॥ २७२॥ एवं चिंतंती रुप्पसुंदरी, दुक्खपूरपडिपुण्णा । करुणसरं रोयंती, भणेइ एयारिसं वयणं ॥ २७३ ॥ | अर्थ-इस प्रकारसे विचारती भई दुःखके पूरसे भरी भई रुप्पसुंदरी रानीभी करुणा स्वरसे रोती भई जैसा होय 8 वैसा ऐसा बचन बोली ॥ २७३ ॥ घिद्धी अहो अकज, निवडउ वजं च मज्झ कुच्छीए। जत्थुप्पन्नावि वियक्खणावि, ही एरिसं कुणइ २७४ | अर्थ-अहो इति आश्चर्ये इस अकार्यको धिक्कार होवो धिक्कार होवो और मेरी कुक्षि नाम उदरमें वज्र पड़ो इस 18| मेरी कुक्षिमें उत्पन्न भईभी और विचक्षण होके ऐसा अकार्य करे है ॥ २७४ ॥ तं सोऊणं मयणा, जापिक्खड रुप्पसुंदरी जणणि रुयमाणिता नाओ, तीए जणणीअभिप्पाओ॥२७५॥ है अर्थ-ऐसा बचन सुनके मदनसुंदरी जितने अपनी माताको रोती भई देखे उतने मदनसुंदरीने अपनी माताका अभिप्राय मनका विचार जाना ॥ २७५ ॥ MORCHASSANSAREESOM श्रीपा.च. ७ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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