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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatih.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir ITA भाषाटीकासहितम्. श्रीपाल- अर्थ-तिस कारणसे हे प्रभो हे स्वामिन् आप प्रसाद करो प्रसन्न होवो कोई उपाय कहो जिससे मेरे पतीका यह चरितम् कोढ़रोग क्षय होवे और लोकापवादभी क्षय होवे अर्थात् व्याधिका क्षय क्या होवे लोगोंमें जो निंदा होवे उसका नाश होजाय ॥८॥ ॥२५॥ पभणेइ गुरू भद्दे !, साहणं न कप्पए हु सावज । कहिउं किंपि तिगिच्छं, विज्झं मंतं च तंतं च ॥८९॥ ___ अर्थ-तब गुरू कहे हे भद्रे साधुओंको कुछभी सावद्य दोष सहित वस्तु कहना नहीं कल्पे क्या सो कहते हैं चिकित्सा वैद्यकशास्त्र और विद्या मंत्र तंत्र यह सावद्य साधुओंको नहीं कहना ॥ ८१॥ तहवि अणवज्जमेगं, समत्थि आराहणं नवपयाणं । इयलोइयपारलोइय,-सुहाण मूलं जिणुदिदै॥१०॥ | अर्थ-तथापि एक नवपदोंका आराधन निर्दोष है कैसा वह इसभव परभवके सुखोंका मूल कारण है और कैसा है है श्री तीर्थकरोंने कहा है ॥९॥ अरिहं सिद्धायरिया, उवझाया साहुणो य सम्मत्तं । नाणं चरणं च तवो, इयपयनवगं परमतत्तं ॥११॥ IPI अर्थ-नवपदोंका नाम कहते हैं अरहंत १ सिद्ध २ आचार्य ३ उपाध्याय ४ साधु ५ सम्यक्त्व ६ ज्ञान ७ चारित्र 18/८ तप ९ ये नवपद उत्कृष्ट तत्व वर्ते है ॥ ९१॥ AKASSAR For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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