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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥२४॥ अर्थ-उस समय मदनसुंदरीके बचनसे उम्बर रानेने शीघ्र वह फल ग्रहण किया आनंदयुक्त मनजिसका ऐसी भाषाटीकामदनसुंदरीने स्वयं माला ग्रहण करी ॥८॥ सहितम्. काभणियं च तीइ सामिय, फिहिस्सइ एस तुम्ह तणुरोगो।जेणेसो संजोगो, जाओ जिणवरकयपसाओ८१15 | अर्थ-और मदनसुंदरीने कहा हे स्वामिन् यह आपके शरीरका रोग चला जायगा अर्थात् मिट जायगा जिस कारणसे यह संयोग जिनवर श्री ऋषभदेव स्वामीने किया है प्रसाद जिसमें ऐसा भया है इससे जाना जाय है यह अर्थ है ॥८॥ तत्तो मयणा पइणा, सहिया मुणिचंदगुरुसमीवंमि । पत्ता पमुइयचित्ता, भत्तीए नमइ तस्स पए ॥२॥ | अर्थ-तदनन्तर मदनसुंदरी अपने भार सहित मुनिचन्द्र नामके गुरूके पासमें गई तब हर्षित है चित्तजिसका| ऐसी मदनसुंदरी गुरूके चरण कमलोंमें भक्तिसे नमस्कार किया ॥ ८२॥ गुरुणोय तयाकरुणा, परित्तचित्ता कहंति भवियाणं। गंभीरसजलजलहरसरेण,धम्मस्स फल मेवं ॥८॥ अर्थ-तब दयासे व्याप्त है चित्त जिन्होंका ऐसे गुरु भव्य जीवोंके आगे सजल मेघके जैसी गंभीर ध्वनिकरके वक्ष्यमाण प्रकार करके धर्मका फल कहे ॥८३॥ सुमाणुसत्तं सुकुलं सुरूवं, सोहग्गमारुग्गमतुच्छमाउं। ॥२४॥ रिद्धिं च विद्धिं च पहुत्तकित्ती, पुन्नप्पसाएण लहंति सत्ता ॥ ८४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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