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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - हीलनाही प्रधान जिन्होंके ऐसे जीव उन्होंपर नहीं किया है आक्रोश जिन्होंने और श्रावक लोगोंको उत्पन्न किया है आनंदका उदय जिन्होंने और भा नाम प्रभा उसका मंडल उस करके शोभित उसका सम्बोधन हे ? भा वलय० पूर्वोक्त विशेषणसहित हे ऋषभनाथ आप मेरे योग क्षेम करो मेरे दुःख दाह दूर करो ॥ ७७ ॥ इरिसहजिणेसर भुवणदिणेसर, तिजयविजयसिरिपाल पहो । मयणाहिय सामिय? सिवगइगामिय, मणहमणोरह पूरिमहो ॥ ७८ ॥ अर्थ — इस कहे प्रकारसे हे ऋषभजिनेश्वर हे भुवनदिनेश्वर लोकमें सूर्यसदृश तीनजगतकी विजयलक्ष्मीको पालनेवाला हे प्रभो हे कामका शत्रु हे स्वामिन् हे शिवगति गामिन् मेरे मनके मनोरथोंको पूर्ण करो यह तात्पर्यार्थ है और | श्लेषार्थ यह है तीन जगत् में विजय जिसका ऐसे श्रीपालका प्रभु उसका सम्बोधन तथा मदनसुंदरीका हित करनेवाला उसका सम्बोधन हे मदनाहित ! ॥ ७८ ॥ | एवं समाहिलीणा, मयणा जा थुणइ ताव जिणकंठा । करट्ठियफलेण सहिया, उच्छलिया कुसुमवरमाला अर्थ — इस प्रकारसे समाधि चित्तकी एकाग्रतामें लगा हुआ है मन जिसका ऐसी मदनसुंदरी जितने स्तुति करे उतने भगवान के कंठसे हाथमें रहा हुआ बिजोरेका फलसहित प्रधान पुष्पोंकी माला उछली ॥ ७९ ॥ मयणा वयणाओ उंबरेण, सहसत्ति तं फलं गहियं । मयणाइ सयंमाला, गहिया आनंदियमणाए ॥ ८०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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