SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपा.च. ४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — उसीही कर्मने इनका भर्तार होनेको तुमको यहां प्राप्त किया है जो यह मेरी पुत्री अपने कर्मका फल पावे तो हमारा क्या दोष है ॥ ४१ ॥ तं सोऊणं बाला, उट्ठित्ता झत्ति उंवरस्स करं । गिन्हइ निययकरेणं, विवाहलग्गं व साहंती ॥४२॥ अर्थ- वह राजाका बचन सुनके मदनसुंदरी कन्या उम्बर राजाका हाथ शीघ्र अपने हाथसे ग्रहण करे क्या करती होवे जैसी मानो विवाह लग्न साधती होवे वैसी ॥ ४२ ॥ सामंतमंतिअंतेउरीउ, वारंति तहवि सा बाला । सरयससिसरिसवयणा, भणइ सुचिय पमाणं ॥ ४३ ॥ अर्थ — सामंत मंत्री लोग और अंतेवरकी स्त्रियां मना करे हैं तौभी शरद ऋतुके चंद्रके जैसा है मुख जिसका ऐसी मदनसुंदरी मेरे यही वर प्रमाण है औरसे कार्य नहीं है ऐसा बोली ॥ ४३ ॥ एगत्तो माउलओ, एगत्तो रुप्यसुंदरी माया । एगत्तो परिवारो, रुयइ अहो केरिसमजुत्तं ॥ ४४ ॥ अर्थ — उस अवसर में एकदिशिमें मदनसुंदरीका मामा पुण्यपाल रोवे एकदिशिमें मदनसुंदरीकी माता रूपसुंदरी रानी रोवे एक तरफ उन्होंके परिवार के लोग रोवे अहो यह कैसा अयुक्त कार्य हुआ ऐसा विचारते भए ॥ ४४ ॥ | तहवि न नियकोवाओ, वलेइ राया अईव कठिणमणो । मयणावि मुणियतत्ता, निय सत्ताओ न पचलेइ ४५ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy