SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — और हे पिताजी ! जो मैं पुण्यविहीनहूं तो आपका दिया भया सुंदर वरभी निश्चय मेरे कर्मदोषसे असुंदरही होगा ॥ ७ ॥ तो गाढयरं राया, रुट्ठो चिंतेइ दुब्बियड्डाए । एयाइ कओ लहुओ, अहं तओ वैरिणी एसा ॥ ८ ॥ अर्थ - तदनंतर राजा अत्यर्थ नाराज हुआ विचारे क्या विचारे सो कहते हैं अज्ञानवती इस पुत्रीने मेरेको हलका किया इस कारण से यह मेरी वैरिणी है पुत्री नहीं है ॥ ८ ॥ रोसेण विवडभिउडी, भीसणवयणं पलोविऊणनिवं । दक्खो भणेइ मंती, सामिय रइवाडिया समओ ९ अर्थ - क्रोधसे विकराल भ्रकुटीसे भयानक मुखजिसका ऐसे राजाको देखके अवसरका जाननेवाला चतुर मंत्री कहे हे स्वामिन्! राजवाड़ीका समय है अर्थात् बगीचे जानेका वक्त है ॥ ९॥ रोसेण धमधमंतो, नरनाहो तुरयरयणमारूढो । सामंतमंतिसहिओ, विणिग्गओ रायवाडीए ॥ १० ॥ अर्थ - तब रोषसे धमधमा हुआ राजा घोड़ेपर सवार होके मंत्री सामंतोंसें परिवरा हुआ राजबाड़ी चला ॥ १० ॥ जाव पुराओ वाहिं, निग्गच्छइ नरवरो सपरिवारो । ता पुरओ जणवंद, पिच्छइ साडंबरमियंतं ॥११॥ अर्थ - जितने राजा परिवार सहित नगरसे बाहिर निकले उतने आगे आडंबर सहित मनुष्योंका समूह आता हुआ देखे ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy