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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपा.च. २४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-उस साधुको देखके उस क्रूर राजाने वैसी हाथोंसे प्रेरणा करी कि जिससे मुनीन्द्र अकस्मात नदी के पानी में गिरा तदनंतर औरभी उस राजाने ॥ ११२२ ॥ संजायकिंपि करुणा, भावेणं कड्डिऊण सो मुक्को। को जाणइ जीवाणं, भावपरावत्तामइ-विसमं ॥ ११२३ ॥ अर्थ - उत्पन्न भया कुछ दयाका परिणाम ऐसे राजाने उस मुनीन्द्रको उसी वक्त जलसे निकालके नदी के तटपर रक्खा यह कैसे भया सो कहते हैं जीवोंके भाव परावर्तन अति विषम है कौन जाने अतिशय ज्ञानी बिना कोई जानसके नहीं पहले गिरानेका भाव हुआ पीछे निकालनेका परिणाम भया ॥ ११२३ ॥ गिहमागएण तेणं, नियावयाओ निवेइओ सहसा । सिरिमइदेवी पुरओ, तीए य निवो इमं भणिओ ११२४ अर्थ - घर आके राजाने शीघ्रही श्रीमती रानीके आगे अपना निर्मल भाव कहा याने मैंने आज एक मुनिको नदीसे बाहर निकाला बाद श्रीमतीने राजासे यह कहा ॥ ११२४ ॥ अन्नेसिंपि जियाणं, पीडा - करणं हवेइ कडुय- फलं । जंपुण मुणिजणपीडा, - करणं तं दारुणविवागं ॥ ११२५ ॥ अर्थ - औरभी जीवोंको पीड़ाका करना उसका कड़वा फल है और जो मुनिजनको पीड़ाका करना वह भयंकर | विपाक फल देनेवाला है ।। ११२५ ॥ जओ साहूणं हीलाए, हाणी हासेण रोयणं होइ । निंदाइ बहो बंधो, ताडणया वाहिमरणाई ॥ ११२६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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