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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- चरितम् भाषाटीकासहितम्. ॥१३८॥ CALCCACAUCLk जह जह ताडंति मुणिं, ते दुट्टा तह तहा समुल्लसइ । हासरसो नरनाहे, मुणिनाहे उवसमरसो य॥१११८॥ अर्थ-वह दुष्ट वंठ पुरुष जैसे २ मुनिको ताड़े वैसा २ राजाके हास्यरसका उल्लास होवे अर्थात् राजा हंसे और मुनि-1 शाश्वरके शान्तरसका उल्लास होवे ।। १११८ ॥ ते कयमुणिउवसग्गा, निब्भग्गा हणियभूरिमियवग्गा। नरवइपुद्विविलग्गा, पत्ता निययंमि नयरंमि १११९ ___ अर्थ-किया मुनिको उपसर्ग जिन्होंने ऐसे इसि कारणसे भाग्यहीन और मारे हैं मृगसमूह जिन्होंने ऐसे वंठ पुरुष राजाके पीछे लगे हुए अपने नगरमें आए ॥ १११९ ॥ अन्नदिणे सो पुणरवि, राया मिगयागओ नियं सिन्नं। मुत्तूण हरिण-पुदीइ, धाविओ इक्कगो चेव ॥११२०॥ | अर्थ-अन्यदिनमें राजा मृगयागयाभया अपने सैन्यको पीछे छोड़के अकेला हरिणके पीछे घोड़को दौड़ाया ११२० है नइतडवणे निलक्को, सो हरिणो नरवरो तओचुक्को। जापिच्छइ ता पासइ, नइउवकंठे ठियं साहुं ११२१/४ का अर्थ-वह हरिण नदीके तटपर जो बन वहां सघन वृक्षों करके आच्छादित होनेसे उस बनमें नहीं देखनेमें आया | तब राजा मृगसे चूका हुआ जितने इधर उधर देखता है उतने नदीके किनारेपर काउसग्गमें खड़ा हुआ एक मुनीको देखा ॥ ११२१॥ |तं दट्ठणं पावेण, तह पिल्लिओ मुणि-वरिंदो । सहसत्ति जहा पडिओ, नईजले तो पुणो तेण ॥ ११२२ ॥ SAXASSISEASES ॥१३८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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