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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ १३५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - धर्म चिंतामणि सदृश मनोज्ञ वांछित अर्थका देनेवाला है कैसा है धर्म निर्मल, निर्दोष केवलज्ञानरूप लक्ष्मीका बिस्तारके करनेवाला ॥ १०९१ ॥ कल्लाणिक्कमओ वित्त, -रूवे मेरुवमो इमो । सुमणाणं मणो तुट्ठि, देइ धम्मो महोदओ ॥ १०९२ ॥ अर्थ - धर्म कल्याण मंगलके करनेवाला मेरुपर्वतके सरीखा मेरु पक्षमें कल्याण नाम स्वर्णमय मेरु है और प्रसिद्ध है। और मेरु पक्षमें वर्तुल मेरु है और बहुत ऊंचा है धर्म भी ऐसाही है धर्मका भी बड़ा उदय है और शोभन स्वरूप है और यह धर्म शुद्ध मनवालोंको अर्थात् निर्दोष मनवालोंको संतोष देवे है मेरु पक्षमें देवोंके मनमें संतोष होवे है ॥ १०९२ ॥ सुगुत्तसत्तखित्तीए, सबस्सव य सोहिओ । धम्मो जयइ संवित्तो, जंबुद्दीवोवमो इमो ॥ १०९३ ॥ अर्थ - सर्व घरके सारसदृश अच्छी तरहसे रक्षा करी गई सात क्षेत्र जिनभवन १ जिनप्रतिमा २ पुस्तक ३ साधु ४ साध्वी ५ श्रावक ६ श्राविका ७ इन्होंकी जिसमें और सम्यक आचार जिसमें ऐसा धर्म जम्बूद्वीपके जैसा सर्वोत्कृष्ट बत जम्बूद्वीपमें भी भरतादिक सात क्षेत्र हैं और गोल आकार है इस वास्ते जम्बूद्वीपकी उपमा करी ॥ १०९३ ॥ एसो य जेहिं पन्नत्तो, तेवि तत्तं जिणुत्तमा । एयस्स फलभूया य, सिद्धा तत्तं न संसओ ॥ १०९४ ॥ अर्थ - यह धर्म जिन्होंने कहा है ऐसे तीर्थंकरदेवभी तत्व कहे जावें हैं धर्मका फलभूत सिद्ध तत्व है इसमें सन्देह नहीं है ॥ १०९४ ॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ १३५ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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