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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥१३३॥ अर्थ-अहो भव्यो भवोधनाम संसारमें मनुष्य सम्बन्धी भवसिद्धान्तमें चुल्लग पासगधन्ने इत्यादि दश दृष्टांतों भाषाटीकाकरके दुर्लभ कहा है ॥ १०७५ ॥ 3 सहितम्. लद्धमि माणुसे जम्मे, दुल्लहं खित्तमारियं । जं दीसंति इहाणेगे, मिच्छाभिल्लापुलिंदया ॥ १०७६॥ | दा अर्थ-कदाचित मनुष्य भव पानेसे आर्य क्षेत्र पाना दुर्लभ है जिस कारणसे इस भरतक्षेत्रमें अनार्य देशोंमें बहुतसे | म्लेच्छ, भील पुलिन्दादिक रहते हैं वे धर्म क्या जानें ॥ १०७६ ॥ आरिएसु य खित्तेसु, दुल्लहं कुलमुत्तमं । जं वाहसुणियाईणं, कुले जायाण को गुणो ॥ १०७७॥ | हा अर्थ-आर्य क्षेत्र पानेसेभी उत्तम कुलपाना दुर्लभ है जिस कारणसे आर्य क्षेत्रमेंभी व्याध कसाइ वगेरेह; के कुलमें उत्पन्न होनेसे क्या गुण होवे अपितु कोई गुण न होवे ॥ १०७७ ॥ कुले लद्धे वि दुल्लंभं, रूवमारुग्गमाउयं । विगला वाहियाऽकाल, मया दीसंति जं जणा ॥ १०७८॥ __ अर्थ-उत्तम कुल पानेसेभी रूप पांच इन्द्रिय परिपूर्ण तथा आरोग्य निरोगता और बड़ा आयुष ये तीन बात पानी है दुर्लभ हैं जिस कारणसे उत्तम कुलमें भी उत्पन्न भए बहुत लोक विकलेन्द्रिय रोगी और अकालमेंही मरते हुए |x ॥१३३॥ देखते हैं ॥१०७॥ तेसु सवेसु लद्धेसु, दुल्लहो गुरुसंगमो। जं सया सबखित्तेसु, पाविजंति न साहुणो ॥ १०७९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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