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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल चरितम् भाषाटीका| सहितम्. ॥१३२॥ SEASE मइसागरोय इक्को, तिन्नेव य धवलसिट्टिणो मित्ता । एए चउरोवि तया, रन्ना नियमंतिणो ठविया १०६६ है अर्थ-उस वक्तमें एक मतिसागर और तीन धवल सेठका मित्र यहचार श्रीपाल राजाने अपने मंत्री स्था– १०६६ । कोसंबीनयरीओ, आणाविओ धवलनंदणो विमलो। सो कणयपट्टपुब्वं, सिट्टी संठाविओ रन्ना १०६७ 31 अर्थ-तथा कौशम्बी नगरीसे बिमल नामका धवल सेठके पुत्रको बुलाके श्रीपाल राजाने सोनेका सिरपेच बंधाने पूर्वक नगर सेठ थापा ॥ १०६७॥ अट्टाहियाओ चेईहरेसु, काराविऊण विहिपुवं । सिरिसिद्धचक्कप्पयं, च कारए परमभत्तीए ॥ १०६८॥ ___ अर्थ-तथा श्रीपाल राजा जिनमंदिरों में अट्ठाईका महोत्सव कराके विधिपूर्वक परम भक्तिसे सिद्धचक्रकी पूजा करवावे ॥१०६८॥ ठाणे ठाणे चेइयहराइं, कारेइ तुंगसिहराइं। घोसावेइ अमारिं दाणं दीणाण दावेइ॥ १०६९॥ ___ अर्थ-ठिकाने २ ऊंचा है शिखर जिन्होंका ऐसे चैत्य ग्रह जिनमंदिर करवावे तथा अमारी उद्घोषणा करवावे सर्व | जीवोंको अभय दान दिवावे और दीनोंको दान दिवावे इस प्रकारसे पुण्य कृत करे ॥१०६९॥ नायमग्गेण रज, पालंतो पिययमाहिं संजुत्तो। सिरिसिरिपालनरिंदो, इंदुव्व करेइ लीलाओ॥१०७०॥ -- अर्थ-न्यायमार्गसे राज्य पालता हुआ स्त्रियोंसहित श्रीपाल राजा इन्द्र के जैसी लीला क्रीडा करे ॥ १०७०॥ ॥१३२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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