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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Art एवं थोऊणनमंसिऊण, तं अजियसेणमुणिनाहं । सिरिपालनिवो ठावइ, तप्पुत्तं तस्स ठाणमि ॥१०६२॥ | अर्थ-इस प्रकारसे उस अजितसेन मुनिराजकी स्तुति करके और नमस्कार करके श्रीपाल राजा अजित्तसेन राजाके पुत्रको उसके स्थानमें बैठावे ॥१०६२॥ कयसोहाए चंपापुरीइ, समहसवं सुमुहत्ते । पविसइ सिरिसिरिपालो, अमरपुरीए सुरिंदुव ॥ १०६३ ॥ ___ अर्थ-करी है शोभा जिसकी ऐसी चंपानगरीमें श्रीपाल राजा अच्छे मुहूर्तमें उत्सव सहित प्रवेश करे किसमें किसके जैसा अमरपुरी देवनगरीमें इन्द्र के जैसा ॥ १०६३ ॥ तत्थय सयलेहि, नरेसरेहि, मिलिऊण हरिसियमणेहिं। पियपदृमि निवेसिय, पुणोभिसेओ को तस्स ॥ १०६४ ॥ | अर्थ-वहां चंपानगरीमें हर्षित मन जिन्होंका ऐसे सर्व राजा मिलके पिताके पट्टमें स्थापके श्रीपाल राजाका और भी राज्याभिषेक किया ॥ १०६४ ॥ मूलपट्टाभिसेओ, कओ तहि मयणसुंदरि-एवि । सेसाणं अट्रन्हं, कओ अ लहु-पट्टअभिसेओ १०६५ अर्थ-वहां मदन सुंदरीका मूल पट्टाभिषेक किया अर्थात् मूल पट्टरानीपदमें स्थापित करी और आठ रानियोंको 13 छोटी पट्टरानी की ॥ १०१५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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