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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् Huntertontontonton द्रा अर्थ-ऐसे कहने परभी जितने युद्धसे नही निवृत्त होवे उतने उन श्रीपाल राजाके सुभटोंने अजितसेन राजाको भाषाटीकानीचा गिराके लीलासे बांध लिया ॥ १०४२॥ सहितम्. सिरिपालरायपासे, आणीओ जाव सो तहा बद्धो । ताव तेणं च रन्ना, सोविहु मोयाविओ ज्झत्ति १०४३ । अर्थ-श्रीपाल राजाके पासमें जितने अजितसेन राजाको बांधके लाए उतने श्रीपाल राजाने अजितसेन राजाको शीघ्र बंधनसे छुड़ाया ॥ १०४३ ॥ हूँ भणिओय ताय मा किंपि, नियमणे संकिलेसलेसंपि।चिंतेसु किं तु पुवंव, नियभुवं भुंजसु सुहेणं १०४४ है अर्थ-और कहा हे तात अपने मनमें कोई प्रकारसे संक्लेशका लेशभी मत बिचारो किंतु पहलेके जैसा अपना राज सुखसे करो ॥ १०४४ ॥ तो अजियसेण राया, चित्ते चिंतेइ ही मए किमियं। अविमंसियं कयं जं, दूयस्स न मन्नियं वयणं ॥१०४५॥ ___ अर्थ-बाद श्रीपाल राजाका बचन सुनोंके अनन्तर अजितसेन राजा मनमें बिचारे हि दूतिखेदे मैंने क्या यह बिना बिचारा कार्य किया कि जो दूतका बचन नहीं माना ॥ १०४५ ॥ ॥१२९॥ कत्थाहं वुडोवि हु, परदोहपरायणो महापावो । कस्थ इमो बालोवि हु, परोषपारिकमम्मपरो ॥१०४६ATHI SESUASAASASSASSAIS*** a n For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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