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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CRORESAKAL अर्थ-पहेले तैने मधुर वचन कहा मध्यमें खट्टा अंतमें कडुवा और तीखा ऐसा वचन कहनेके लिए ऐसा भोजन करना जानता हुआ चतुर्मुख होवे है ॥ १०१३॥ निययान केविअम्हे, तस्स न सो कोवि अम्ह नियओत्ति।सोअम्हाणं सत्तु, अम्हेविय सत्तुणो तस्स१०१४ | अर्थ-हम तेरे स्वामीके घरके नहीं हैं और वह तेरा स्वामी हमारा नहीं है किंतु वह तेरा स्वामी हमारा शत्रु है 5 हमभी तेरे स्वामीके शत्रु हैं ॥ १०१४ ॥ जंजीवंतोमुक्को, सोतइया बालओत्ति करुणाए। तेण अम्हे हीणबला, सो बलिओ बनिओ तुमए १०१५ __अर्थ-तेरा स्वामीको उस अवसरमें बालक है ऐसा जानके हमने दयासे जीता हुआ छोड़ा तिस कारणसे तैने हमको हीनबली वर्णन किया और उस अपने स्वामीको बलवान् वर्णन किया ॥ १०१५ ॥ नियजीवियस्स नाहं, रुटो रुट्ठो हु तस्स जमराया। जेणाहं निचिंतो, सुत्तोसीहुव्व जग्गविओ॥१०१६॥ हूँ PI अर्थ-अरे मैं अपने जीवितव्यपर नहीं नाराज हुआ हुं किंतु निश्चय तेरे स्वामीके ऊपर यमराजा नाराज हुआ है| जिससे तेरे स्वामीने सोते सिंहके जैसा मेरेको जगाया ॥ १०१६ ॥ जंतं दूओसि दिओसि, तेण मुक्कोसि गच्छ जीवंतो। तुह सामियहणणत्थं, एसोहं आगओ सिग्घ १०१७ ACCASEASEARCHES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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