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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuti Gyanmandir श्रीपालचरितम् CAGAR ॥१२५॥ अर्थ-और हे देव हे राजन् कहां आप और कहां श्रीपाल कैसे सो कहते हैं आप सरोवर जैसे हैं और श्रीपाल समुद्र भाषाटीकासदृश है और आप सरसों जैसे हैं और श्रीपाल मेरु जैसा है और आप शशक नाम खरगोस जैसे हैं और श्रीपाल 18 सहितम्. है सिंहके जैसा है इसी कारणसे आपहीन बली हैं इसवास्ते आप दोनोंमें बहुत अंतर है ॥ १.०९॥ जइ तं रुट्रोसिन जीवियस्स, ताझत्तिभत्तिसंजुत्तो।सिरिसिरिपालनरेसरपाए, अणुसरसु सुपसाए १०१० | अर्थ-जो तुम अपने जीवितव्यापर नही नाराज हुआ हो तो शीघ्र भक्तिसहित श्रीश्रीपालराजाके चरणोंकी सेवा टू करो कैसे हैं श्रीपाल राजाके चरण शोभन है प्रसाद जिन्होंका ॥ १०१०॥ है जइ कहवि गवपवय,-मारूढो नो करेसि तस्साणं। तो होहि जुज्झसजो, कज्जपयं इत्तियं चेव ॥१०१२॥ | अर्थ-जो कोइ प्रकारसे अहंकाररूप पर्वतपर चढेहुए श्रीपाल राजाकी आज्ञा नहीं करो हो तो युद्धके वास्ते तम्बार ही होवो यहां कार्यपद इतनाही है यातो श्रीपाल राजाकी सेवा करो नहीं तो युद्धकी तय्यारी करो ॥ १०११॥ तं सोऊणं सो अजियसेण, रायावि एरिसंभणइ। दूओ यदिओय तुमं, नज्जसिएएण वयणेणं ॥१०१२॥ | अर्थ यह दूतका बचन सुनके अजितसेनराजाभी ऐसा वचन कहे अरे ते इस बचनसे दूत और ब्राह्मण जाना जाता है ॥ १०१२॥ ॥१२५॥ पढम महुरं मज्झंमि, अविलं कडुयतित्तयं अंते । वुत्तुं भुत्तुं च तुम, जाणंतो होसि चउरमुहो॥१०१३॥ SHARIPATASHAXHIRASSASS AARAK For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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