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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल चरितम् | ॥११९॥ ABROASALMALSEX अर्थ-तब आश्चर्य पाया हुआ मालवराजा प्रजापाल जमाई श्रीपालको नमस्कार करे और कहे हे स्वामिन् महा|भाषाटीका६ प्रभाव जिसका ऐसा मैंने आपको नहीं जानाथा ॥ ९५६ ॥ सहितम्. सिरिपालोवि नरिंदो, पभणइ नहु एस मह प्पभावोत्ति। किंतु गुरुवइट्ठाणं, एस पसाओ नवपयाणं ९५७ | अर्थ-श्रीपालराजा कहे यह मेरा प्रभाव नहीं है किंतु गुरूके कहे हुए नवपदोंका यह प्रभाव है ॥ ९५७ ॥ सोऊण तमच्छरियं, तत्थेव समागओ समग्गोवि । सोहग्गसुंदरी-रुप्पसुंदरीपमुहपरिवारो ॥ ९५८ ॥ | अर्थ-वह आश्चर्य सुनके सौभाग्यसुंदरी रूपसुंदरी प्रमुख सर्व परिवार वहांही पर मंडपमें आया ॥ ९५८ ॥ मिलिए य सयणवग्गे आणंदभरेय वहमाणे य । सिरिपालेणं रन्ना, नाडयकरणं समाइह ॥ ९५९ ॥ &ा अर्थ-अथ स्वजन सम्बन्धियोंका समूह मिलनेसे अधिक आनंद होनेसे श्रीपाल राजाने नाटक करनेकी आज्ञादी॥९५९॥ तो झत्ति पढमनाडय, पेडयमाणंदियं समुढेइ । परमिक्का मूलनडी, बहुंपि भणिया न उठेइ ॥९६०॥ PL. अर्थ-तदनंतर शीघ्र प्रथम नाटकके पेड़ेका वृन्द याने समूह वाला हर्षित चित्त जिन्होंका ऐसे उठे परन्तु एक मूल नटवी बहुत कहा तौभी नहीं उठी ॥ ९६० ॥ कह कहवि पेरिऊणं, जाव समुहाविया निरुच्छाहा । तो तीए सविसायं, दूहयमेगं इमं पढियं ॥९६१॥ है। ॥११९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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