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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ११६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंप्पड चुप्पडकणतिण, - जलइंधण संगहाय किज्जंति । सज्जिज्जंति य जंता, तह सज्जिज्जंति वरसुहडा ९३० अर्थ - तथा वस्त्र और घृतादि धान्य घास जल इन्धनवगैरहका संग्रहः किया जावे है और यन्त्र शतघ्नी वगैरह तय्यार किए जावें प्रधान सुभटोंकी प्रशंसा करी जावे ॥ ९३० ॥ एवं सा उज्जेणी, नयरी बहुजणगणेहिं संकिन्ना, । परिवेढिया समंता, तेणं सिरिपालसिनेणं ॥ ९३१ ॥ अर्थ - इस प्रकार से वह उज्जैनी नगरी बहुत लोकोंके समूहसे सांकरी भई और श्रीपालकी सेनासे चौतर्फ वीटी गई अर्थात् श्रीपालकीसेना नगरीके बाहर चौतर्फ बीटके उतरी ॥ ९३१ ॥ आवासिय सिन्ने, रयणीए पढमजामसमयंमि । हारपभावेण सयं, राया जणणीगिहं पत्तो ॥ ९३२ ॥ अर्थ - सेनाका उतारा कियोंके बाद रात्रिके पहले प्रहर में श्रीपालराजा हारके प्रभावसे माताके घर गया ॥ ९३२ ॥ | आवासदुवारि ठिओ, सिरिपालनरेसरो सुणइ ताव, । कमलप्पभा पर्यपइ, बहुयं पइ एरिसं वयणं ॥९३३॥ अर्थ - श्रीपालराजा माताके घरके दरवज्जेके बाहर खड़ा हुआ जितने सुने उतने कमल प्रभा माता मदनसुंदरी बहूसे | ऐसा वचन कहे ॥ ९३३ ॥ वच्छे परचकेणं, नयरी परिवेढिया समंतेणं । हलोहलिओ लोओ, किं किं होही न याणामि ॥ ९३४ ॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीका सहितम्. ॥ ११६ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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