SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4SEASESSHOSHOSHISHIGASH | अर्थ-तदनंतर मदनसुन्दरीके साथ मिलनेमें उत्कंठित मन जिसका और माताके चरणों में नमस्कार करनेमें तत्पर श्रीपालराजा सोपारक पत्तनसे प्रयाण भेरी दिलावे ॥ ९२५ ॥ मग्गे हयगयरहभड,कन्नामणिरयणसत्थवत्थेहि, । भिहिजइ सो राया, पए पए नरवरिंदेहिं ॥९२६॥ | अर्थ-वह श्रीपालराजा मार्गमें ठिकाने २ राजाओं करके भेटनोंसे भेटा जाबे है हाथी घोड़ा रथ प्यादल कन्या |मणि चन्द्रकान्तादि रत्नमाणिकादि शस्त्र, वस्त्र वगैरहः भेटना राजालोक लाके देते हैं ॥ ९२६ ॥ है एवं ठाणे ठाणे, सो बहुसेणाविवड्डियबलोहो । महिवीढे नइवड्डिय, नीरो उयहिव वित्थरइ ॥९२७॥ देते हैं ॥ ९२६॥ | अर्थ-इस प्रकारसे श्रीपालराजा ठिकाने २ बहुत सेना करके वढाहै सैन्य समूह जिसके ऐसा पृथ्वीपीठपर विस्तार पावे जैसा नदियों करके बढ़ा हुआ समुद्रका जल वैसा श्रीपालराजाका कटक पृथ्वीपर विस्तार पाया ॥ ९२७ ॥ मरहट्ठय सोरट्रय, सलाडमेवाडपमुहभूवाले । साहंतो सिरिपालो, मालवदेसं समणुपत्तो ॥ ९२८॥ अर्थ-महाराष्ट्र सोरठलाट देशहित मेदपाट प्रमुखदेश विशेषके राजाओंको स्वाधीन करता हुआमालवदेशमें पहुंचा ९२८ तं परचक्कागमणं, सोऊणं चरमुहाओ अइगरुयं । सहसत्ति मालविंदो, भयभीओ होइ गढसज्जो॥९२९॥ _ अर्थ-मालव देशका राजा प्रजापाल चर पुरुषके मुखसे बहुत बड़ा परसैन्यका आगमन सुनके अकस्मात भयभीत हुआ गढ़ तय्यार करके रहा ॥ ९२९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy